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लेखिक-पद्मा अग्रवाल

अब गार्गी समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. कोरोना ने पैर पसार लिए थे. यहां भी लौकडाउन की आहट थी. वह परेशान हो कर पुरू को फोन करती, ‘’तुम ने पैसे ट्रांसफर नहीं किए, मेरा खर्च कैसे चले?  फ्लैट का किराया, गाड़ी वगैरह... जो फ्लैट बुक किया था, वहां से भी मेल आई है. वह डील कैंसिल कर देने की धमकी दे रहा है.“

“हां, मुझे सब मालूम है. मेरी कंपनी बंद हो गई है और यहां कोरोना फैल गया है. इसलिए लौकडाउन कर दिया गया है. मैं स्वयं बहुत बड़ी मुसीबत  में हूं.”

उस के इंतजार में 3-4 महीने बीत गए थे. गार्गी को समझ आ गया था कि वह ठगी गई है और फिर उस के बाद उस ने अपना सिम बदल कर उस से संबंध समाप्त कर लिया. वह फ्लैट किसी और का था, केवल कुछ महीनों के लिए ही लिया गया था. इसलिए अब मजबूर हो कर वह अपनी मां के पास आ गई और फिर से नौकरी करने लगी.

कुछ दिनों तक तो पुरू के दिए धोखे से वह बाहर नहीं आ पा रही थी. वह खोईखोई और उदास  रहती. मां ने पहले ही उसे जल्दबाजी में शादी करने से बहुत मना किया था. परंतु वह तो उस के बड़े पैकेज की दीवानी थी. गुस्से में गारगी ने अब तो पुरु का मोबाइल नंबर भी ब्लौक कर दिया था और अपनी शादी की यादों के  पन्ने को फाड़ कर अपने जीवन में आगे बढ़ चली थी.

कुछ दिनों तक तो वह रोबोट की तरह भावहीन चेहरा लिए घूमती रही.  फिर अपना पुराना औफिस जौइन कर लिया. वहीं पर एक पार्टी में  उस ने एक  सुदर्शन व्यक्तित्व के युवक को देखा. उस की उम्र लगभग 30 – 35  वर्ष  के आसपास, गेहुंआ रंग, इकहरा बदन, लंबा कद, कुल मिला कर सौम्य सा व्यक्तित्व. कनपटी पर एकदो सफेद बाल उस के चेहरे को गंभीर और प्रभावशाली बना रहे थे. कहा जाए तो लव ऐट फर्स्ट साइट जैसा ही कुछ था.  काला ट्राउजर और स्काईब्लू शर्ट  पर उस की नजरें ठहर गईं थीं.

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