युवावस्था उम्र की वह दहलीज है जिस में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होना लाजिमी है. यह आकर्षण कब प्यार में बदल जाता है, पता ही नहीं चलता. कालेजगोइंग युवकयुवतियों में तो प्रेम सिर चढ़ कर बोल रहा है. वैसे प्रेम करने में कोई बुराई नहीं है. अगर प्रेम में सीरियसनैस हो, लेकिन ऐसा होता नहीं है. आज की पीढ़ी ने तो प्रेम को मात्र ऐंजौय का जरिया बना रखा है. वे शारीरिक आकर्षण को ही प्रेम सम झ बैठे हैं.

प्रेम का नशा महानगरों के युवकयुवतियों पर ही नहीं चढ़ा है बल्कि छोटे शहरों यहां तक कि गांवदेहातों तक के युवा प्रेम का लुत्फ उठाते हुए देखे जा सकते हैं. महानगरों में तो पार्कों, मैट्रो, मौल्स और खंडहरों में युवा एकदूसरे से आलिंगनबद्ध होते नजर आ जाते हैं. उन्हें देख कर ऐसा लगता है जैसे ये स्थल खासतौर पर प्रेमी युगलों के लिए ही बनाए गए हों.

सच तो यह है कि सैक्स की पूर्ति के लिए ही युवक प्रेम का ढोंग रचते हैं. वे अपनी गर्लफ्रैंड को प्रेम का  झांसा दे कर उस से सैक्स संबंध बनाते हैं और जब उन का उस से जी भर जाता है तो उसे छोड़ कर नई गर्लफ्रैंड बना लेते हैं. फिर उस को कौन्फिडैंस में ले कर उस के साथ भी सैक्स संबंध बनाते हैं. अगर गर्लफ्रैंड उसे इस के लिए मना करती है तो वह अभिनय करते हुए कहते हैं, ‘‘ट्रस्ट मी यार, मैं ताउम्र तेरा साथ निभाऊंगा.’’ भोलीभाली युवतियां ऐसे फरेबी बौयफ्रैंड के जाल में फंस कर अपना सर्वस्व लुटा देती हैं और फिर समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहतीं.

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