सुप्रीम कोर्ट द्वारा मुसलिम महिला  के अधिकारों को परिभाषित करने हेतु सुनवाई प्रक्रिया के बीच ही बौंबे हाईकोर्ट ने अपने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में कहा कि शौहर द्वारा मौखिक रूप से 3 बार तलाक कहने मात्र से तलाक वैध नहीं होगा. तलाक देने से पहले उसे कुरआन द्वारा दिए गए दिशानिर्देश का पालन करना होगा. मामला तलाक के बाद गुजारा भत्ते का था और दिलशाद बेगम ने अपने पूर्व शौहर अहमद खां से गुजारा भत्ता पाने के लिए मजिस्ट्रेट के सामने अर्जी दायर की थी. मजिस्ट्रेट ने इस अर्जी को धारा 125 के तहत खारिज कर दिया. तब महिला ने सैशन कोर्ट में अपील की जिसे कोर्ट ने सुनवाई हेतु मंजूर कर लिया और 1,500 रुपए मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया, साथ ही 5,000 रुपए मुकदमे का खर्च भी देने का निर्देश दिया.

पति ने इस आदेश को बौंबे हाईकोर्ट में चुनौती दी और कहा कि उस ने 20 मई, 1994 को एक मसजिद में 2 गवाहों की मौजूदगी में 3 बार तलाक दिया है और सामान भी लौटा दिया है. इसलिए मुसलिम महिला (तलाक के अधिकारों का संरक्षण) कानून 1986 के तहत इद्दत की अवधि के बाद पत्नी गुजारे का दावा नहीं कर सकती.

अपनी बात के सुबूत में उस ने तलाकनामा भी कोर्ट में पेश किया जिस पर गवाहों के हस्ताक्षर थे. बौंबे हाईकोर्ट ने उस की दलीलें रद्द कर दीं और कहा कि वैध तलाक के लिए तलाकनामा काफी नहीं है. पति को यह साबित करना होगा कि उस ने तलाक से पहले मध्यस्थता अथवा समझौते की कोशिश की थी. इस बारे में पति कोई सुबूत पेश करने में नाकाम रहा.

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