इक मोड़ पर ठिठकती

इक मोड़ पर सहमती

आदि ढूंढ़ती, अंत ढूंढ़ती

कभी खुशी की फुहार

कभी गम की साइत

तितरबितर, बिखरे हुए

पलों में खुशियां ढूंढ़ती

हसरतों के धागे जोड़

बनाती है ओढ़नी

उतर आती है और

मेरे आंगन में चांदनी

समय ने ली करवट

मांगा हिसाब बीते लमहों का

और शक्तिहीन हाथों में

शक्ति का संचार कर

इक नई दिशा देने को

मेरी कहानी भटकती है

इक नई शुरुआत को

इक सुंदर अंत देने

मेरी कहानी भटकती है.

              - हेमा महाडिक लोखंडे

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...