छत की उम्र पूछनी है

तो ढहती दीवारों से पूछ

आग का मतलब पूछ न मुझ से

दहके अंगारों से पूछ

 

पुरखों की संघर्षकथा

कंप्यूटर क्या बताएगा

कैसे मुकुट बचा मां का

टूटी तलवारों से पूछ

 

बड़ेबड़े महलों का तू

इतिहास लिखे इस से पहले

कितने घर बरबाद हुए थे

बेघर बंजारों से पूछ

 

छेनी की चोटों से जितना

रेशारेशा दुखता है

ऊंचा उठने की कीमत तो

जख्मी मीनारों से पूछ

 

ओ मगरूर मुसाफिर, तेरे सफर की

फिर भी कोई मंजिल है

जिस को चलना फकत चलना है

उन तारों से पूछ.

 

 डा. बीना बुदकी

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