पलक झपकते ही मन में
तुम ने कैसी प्रीत जगा दी
मधुरमधुर मुसकरा कर तुम ने
तन में कैसी अगन लगा दी
इसे बुझाने का कितना भी
यत्न करूं, सब निष्फल होगा
शर्म से दहके गाल बन गए
वे सिंदूरी आम तुम्हारे
दो नटखट वे नैन बन गए
दो अंगूरी जाम तुम्हारे
नशा चढ़ा है, क्या उतरेगा?
यत्न करूं, सब निष्फल होगा.
डा. महेंद्र कौशिक
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
सब्सक्रिप्शन के साथ पाए
500 से ज्यादा ऑडियो स्टोरीज
7 हजार से ज्यादा कहानियां
50 से ज्यादा नई कहानियां हर महीने
निजी समस्याओं के समाधान
समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...
सरिता से और