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मेरी पत्नी को शिकायत है कि अब मैं हमबिस्तरी में सहयोग नहीं दे पाता हूं,मेरी कमजोरी की क्या वजह हो सकती है?

सवाल
मेरी शादी को 2 साल हो गए हैं. मेरा एक बेटा है. मेरी पत्नी को शिकायत है कि अब मैं हमबिस्तरी में उतना सहयोग नहीं दे पाता हूं. मेरी इस कमजोरी की क्या वजह हो सकती है?

जवाब
आप को हमबिस्तरी करने की इच्छा में कमी और परफौर्मैंस में गिरावट की वजह का पता लगाने के लिए किसी सैक्सोलौजिस्ट के पास जाने की जरूरत होगी. वह यह जानने की कोशिश करेगा कि क्या इस के पीछे कोई मनोवैज्ञानिक वजह है या एनीमिया, डायबिटीज, ब्लडप्रैशर जैसी कमियां इस के लिए जिम्मेदार हैं. वजह पता चलने पर आम दवाओं से इलाज किया जा सकता है.

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सेक्स विशेषज्ञों द्वारा अध्ययन से पता चलता है कि सफल सेक्स लाइफ बिताने वाले दीर्घायु तो होते ही हैं, इनके जीवन में सफल होने के चांस भी अधिक होते हैं. रोजमर्रा की छोटी-छोटी मगर महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखकर व्यक्ति अपनी सेक्स लाइफ को एंजॉय कर सकता है. सेक्स के दौरान अगर कुछ बातों का ध्यान रखें तो जीवन सुखमय और आनंददायक हो सकता है.

सेक्स के दौरान न तो आक्रामक रुख अपनाएं न ही अपने पार्टनर पर हावी होने की कोशिश करें. हां, उसके साथ सहजता से पेश आए साथ ही उसकी पसंद-नापंसद का भी खयाल रखें

  1. अपने पार्टनर से बातचीत करें और उससे सेक्सुअल प्रिफरेंस अवश्य पूछें. कभी भी उस पर अपनी इच्छा नहीं थोपें.
  2. सेक्स की किसी भी क्रिया अथवा विविधता के लिए अपने साथी की इच्छा अथवा अनिच्छा का पूरा सम्मान करें. उसके साथ सहजता से पेश आएं. किसी भी प्रकार की जोर-जबर्दस्ती आपको अपने साथी से दूर कर सकती है. साथ ही अगर प्यार से समझाया जाए तो धीरे-धीरे आपका पार्टनर भी आपका साथ देने के लिए तैयार हो जाएगा.
  3. हमेशा याद रखें कि सेक्स का सुख दो पैरों के बीच नहीं बल्कि दो कानों के बीच अर्थात मस्तिष्क में होता है. शारीरिक संतु‍ष्टि के लिए ऐसी कोई भी हरकत न करें, जिससे आपका पार्टनर नाराज हो जाए अथवा तनावग्रस्त हो जाए. साथ ही अपने पार्टनर की संतुष्टि का भी पूरा ख्याल रखें, अगर वो संतुष्ट होगा तो आपकी संतुष्टि का लेवल दुगना हो जाएगा.
  4. सहवास के पहले हलका और सुपाच्य भोजन लें और यह भी ध्यान रखें कि भोजन और सेक्स के बीच कम से कम दो घंटे का अंतर हो.
  5. सेक्स से पहले कोई भी ऐसी चीज न खाएं जिससे शरीर से दुर्गन्ध या कोई अन्य तेज गंध आती हो, हो सकें तो स्नान या कम से कम ब्रश कर के ही सेक्स की शुरूआत करें.

 

जलते अलाव: भाग 1

सुपर मार्केट से होली के त्योहार का सामान खरीद कर पार्किंग में गाड़ी के पास पहुंचा तो बगल में ही किसी को गाड़ी पार्क करते देखा. पीछे से हुलिया जानापहचाना सा लगा. महिला ने रिमोट से गाड़ी को लौक किया और चाबी को पर्स में डाल कर जैसे ही मेरी तरफ पलटी, मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया-

‘‘अरे जरी, आप? यहां कब आईं?’’

‘‘नलिनजी,’’ अभिवादन के लिए दोनों हाथ जोड़ दिए, ‘‘नमस्ते, कैसे हैं आप? नैना कैसी है? मैं पिछले महीने ही यहां आई हूं.’’

वही 30 साल पुराना शालीन अंदाज. आवाज में वही ठहराव. चेहरे पर वही चिरपरिचित सौम्य सी मुसकराहट. जरा भी नहीं बदली जरी.

‘‘आप 1 महीने से यहां हैं और हमें खबर तक नहीं दी,’’ मैं ने नाराजगी दिखाते हुए अधिकारपूर्वक जवाब तलब किया.‘‘दरअसल, वो घर को व्यवस्थित करने में…’’ विषम परिस्थितियों की पीड़ा का कभी भी खुलासा न करने का वही बरसों पुराना अंदाज. इसलिए मैं ने नहीं कुरेदा.

‘‘मैं घर ही जा रहा हूं, आप भी साथ चलिए न. नैना आप के लिए बहुत चिंतित है,’’ मैं ने आग्रह किया.

‘‘जी, अभी तो मुमकिन नहीं हो सकेगा. यह मेरा फोन नंबर है. नैना जब भी फुरसत में हो कौल कर लेगी तो मैं हाजिर हो जाऊंगी,’’ पर्स से विजिटिंग कार्ड निकाल कर मेरी तरफ बढ़ाते हुए वह बोली और धीमेधीमे कदम बढ़ाते हुए बाजार की भीड़ में खो गई. मैं स्तब्ध खड़ा उसे आंखों से ओझल होने तक देखता रहा.

किसी गाड़ी के हौर्न ने चौंका दिया, और मैं खुद को असमंजस की स्थिति से बाहर निकालने की नाकाम कोशिश करते हुए गाड़ी स्टार्ट करने लगा.

घर पहुंचा तो नैना से सामना होते हुए मैं उसे जरी के बारे में न बतला सका, जानता था कि जरी के इसी शहर में होने की खबर पा कर वह खुद को रोक नहीं पाएगी. उस की जिद मुझे लाचार कर देगी. पिछले  5 सालों में लगभग 5 हजार बार वह जरी की कोई खबर न मिलने की शिकायत कर के चिंता जाहिर कर चुकी है. उस रात कौर गले से नीचे नहीं उतरा. अनमना सा छत पर आ गया. साफशफ्फाक आसमान के टिमटिमाते सितारों ने दिल को सुकून दिया. मेरी जिंदगी के आसमान का ऐसा ही रोशन सितारा तो है जरी. कहने को 3 दशक बीत गए. स्याह बालों में सफेदी ने भी कब्जा जमा लिया मगर लगता है जैसे कल की ही बात हो.

मैं ने एमए में ऐडमिशन लिया तो मेरी छोटी बहन नैना ने भी उसी कालेज में बीए में ऐडमिशन ले लिया. पहले दिन क्लास अटैंड कर के आई तो मां को बतलाने लगी, ‘आई (मां), पता है आज कालेज में एक लड़की से भेंट हो गई. उस के सब्जैक्ट भी मेरे जैसे ही हैं. मैं पूरे 2 घंटे उस के साथ कालेज कैंपस में घूमती रही. लाइब्रेरी का कार्ड बनवाया. औडिटोरियम में टैनिस कोर्ट भी देख लिया और कौन से लैक्चरार किस सब्जैक्ट को पढ़ाएंगे, यह भी जान लिया.’

‘देख, इतनी जल्दी किसी लड़की से इतना घुलनामिलना ठीक नहीं. पता नहीं कैसी है वह लड़की.’

मां ने हिदायत दी तो नैना का उत्साह बर्फीली पहाड़ी के तापमान की तरह तेजी से नीचे आ गया.

‘अच्छा तो यह बात है. क्या नाम है उस का? कहां रहती है? उस के पिताजी क्या काम करते हैं?’ मां ने नैना की उदासी भांप ली.

‘नाम तो मैं ने पूछा ही नहीं, आई. अच्छा, कल पूछ कर तुम्हारे सारे सवालों का जवाब दे दूंगी,’ नैना हिरणी की तरह छलांगें मारते हुए दूसरे कमरे की तरफ बढ़ गई.

दूसरे दिन मैं नैना को साइकिल पर पीछे बैठा कर कालेज ले जा रहा था. रास्ते में एक लड़की को पैदल चलते देख कर वह जोर से चिल्लाई, ‘नीलू भैया, मुझे यहीं पर उतार दीजिए. वह जा रही है मेरी कल वाली सहेली. मैं उस के साथ चली जाऊंगी.’

नैना धम्म से साइकिल से कूदी और दौड़ती हुई उस लड़की के साथ कदम से कदम मिला कर चलने लगी. तब मैं ने पहली बार उस को देखा था. सुडौल काया, तीखे नैननक्श वाली उजली रंगत की लड़की.

कालेज से लौटते ही नैना अपनी क्लास के अलावा अपनी सहेली की चर्चा करना नहीं भूलती. आई को बतलाती, ‘आई, मेरी सहेली का नाम जरीना हमीद है. 11वीं की मैरिट होल्डर है. उस के अब्बू फौरेस्ट औफिस में रेंजर हैं. बहुत ही शांत और सौम्यस्वभाव की है. सब से ज्यादा मजे की बात यह है कि वह मेरी बकबक पर जरा भी इरिटेट नहीं होती. मुसकराती हुई सुनती है मेरी सारी बातें.’

‘पूरे कालेज में एक मुसलमान लड़की ही मिली तुझे दोस्ती करने के लिए?’ धार्मिक असहिष्णु आई अपना अवसाद अधिक समय तक भीतर नहीं रख पाईं.

सुन कर नैना तिलमिला गई, ‘आई, हमारे घरों में ही हिंदू व मुसलमान में भेदभाव किया जाता है. जानती हो कालेज में कोई किसी की जात नहीं पूछता. सब एकदूसरे को नाम से जानते हैं और आपस में टिफिन शेयर करते हैं.’

‘तो क्या तू भी उस के साथ खाना…?’

‘हां, आई, बहुत अच्छा खाना बनाती हैं उस की मम्मी. चटक मसाले वाला टेस्टी खाना. आई, जरी तो पढ़ाई में सब से तेज है और व्यवहार में दूसरी लड़कियों की तरह न तो चंचल है न ही लड़कों की बातें करती है. और रखरखाव, आई, वह सिर्फ एक सादी सी चोटी बनाती है. उस की बातों में न कोई बनावट है न ही कोई दिखावा, इसलिए वह मुझे सब से अच्छी लगती है.’

नैना ने कब जरीना का नाम संक्षिप्त कर के जरी रख दिया, यह खुद उसे याद नहीं.

नैना की जबानी सुना जरी के व्यक्तित्व का विवरण मेरे दिलोदिमाग पर भविष्य का एक सलोना और दिलकश खाका खींचने लगता. ऐसी ही सीधीसाधी, समझदार लड़की की तसवीर मेरे ख्वाबों के महल में अपनी बड़ी सी जगह बनाने लगती. कभी नैना के लिए नोट्स लेने, कभी कोई कालेज संबंधी सूचना देने जरी को नोटबुक या नैना का खत थमाते हुए मैं उस में गुलाब का फूल रखना नहीं भूलता. जरी देखती मगर उस की बड़ीबड़ी आंखें कोई प्रतिक्रिया नहीं करतीं.

बीए करते ही नैना की शादी तय हो गई. नैना की बड़ी मिन्नतों के बाद जरी को मेहंदी की रात के लिए हमारे घर आने की इजाजत मिली. मेरे तो पंख लग गए और मैं अपने दिल की बात कहने के लिए मंसूबों के कभी इस पहाड़ की चोटी पर जा बैठता, कभी उस चोटी पर. नैना को मेहंदी लगाती जरी, मुझे दुलहन की पोशाक में सजी अपने घर के इस कोने से उस कोने तक छमछम चलतीफिरती दिखाई देने लगी.

रस्म अदायगी के समय नैना के इसरार करने पर जरी की भजन की स्वरलहरी ने पूरे परिवार को हैरान कर दिया. जरी के कंठ में इतनी मधुरता है, यह पहली बार पता चला. आई की आवाज ने चौंका दिया, ‘मुसलमान लड़की और इतना सुंदर भक्तिभाव से ओतप्रोत भजन. कहां से सीखा?’

‘कहीं से नहीं, आई. बस, कुदरत की देन है संगीत. जरी की रोमरोम में बहता है,’ नैना ने गर्व से बतलाया.

रात गहराती गई और भजनों के बाद गीतों, गजलों का सिलसिला पौ फटने तक चलता रहा. दिनभर के थकेहारे अतिथि धीरेधीरे नींद की आगोश में समाने लगे. जरी ने चाय का कप हाथ में थाम कर तारोंभरे आकाश को देखा तो मेरे मुंह से बरसों की दबी आरजू शब्द बन कर निकल ही गई, ‘जरी, इन तारों ने काली रातों को उजाला बख्शा है बिलकुल ऐसे जैसे तुम्हारे खयालों ने मेरी अंधेरी रातों को रोशनी से जगमगा दिया.’ सुन कर उस की पलकें झुक गईं लेकिन हमेशा की तरह चुप रही. कोई प्रतिक्रिया नहीं.

नैना की विदाई के बाद मेरी शादी की चर्चा की गरम हवा मेरे कानों में चुभने लगी. एक दिन आई को अच्छे मूड में देख कर कह दिया मैं ने, ‘आई, क्यों ढूंढ़ती हो बहू यहांवहां? बहू तो तुम्हारे सामने है.’

‘तुम्हारा मतलब जरी से है,’ बहुत दिनों से मेरे बदलते हावभाव को ताड़ने में उन्हें देर नहीं लगी, ‘सुन बाल्या, आज कहा सो कहा, फिर कभी मत कहना. कहना तो क्या, सोचना भी नहीं. मराठा ब्राह्मण के घर मुसलमान लड़की को बहू बना कर लानेका पाप मैं नहीं कर सकती.’

‘लेकिन आई, है तो वह लड़की न. मुसलमान हो या हिंदू, इस से क्या फर्क पड़ता है? जरी में वे सारी खूबियां हैं जो एक अच्छी पत्नी और बहू में होनी चाहिए,’ मैं ने पहली बार आई से जिरह की थी.

‘पड़ता है फर्क. बहुत फर्क पड़ता है. बिरादरी हुक्कापानी बंद कर देगी. तुम्हारी औलादों को न हिंदू अपनाएंगे न मुसलमान. तब समझ में आएगा जब तुम से बच्चे अपनी जात पूछेंगे. और क्या हिंदू समाज में संस्कारी लड़कियों का अकाल पड़ गया है? शादी 2 लोगों को ही नहीं, 2 खानदानों को जोड़ती है. आने वाली पीढ़ी के संस्कारों और धर्मों को सुनिश्चित करती है.’

‘आई, किस जमाने की बात कर रही हो? यह तंग सोच अब खत्म हो रही है. अब जात, बिरादरी, धर्म शादी के मापदंड नहीं. शादी 2 दिलों का विश्वास और प्रेम की बुनियाद पर किया गया फैसला होता है,’ मैं ने आई को समझाने की कोशिश की.

‘देख नीलू, मेरे जीतेजी तू ऐसा नहीं करेगा और अगर करना ही है तो पहले मुझे श्मशान घाट पहुंचा दे,’ आई के मर्माहत शब्दों ने मेरी रहीसही हिम्मत भी पस्त कर दी.

6 महीने बाद मैं बिरादरी की रूपवान लड़की की मांग का सिंदूर बना दिया गया. जरी रिसैप्शन में अपने परिवार के साथ आई थी. ऊपर से बिलकुल ठहरी हुई झील की तरह शांत. लेकिन मेरे हाथ में गिफ्ट थमा कर बधाई देते  हुए उस की नजरों में बलि होने वाले बकरे की निरीहता देख कर अंतस तक  आहत हो गया मैं.

30 साल से भी ज्यादा अरसा गुजर गया इस हादसे को लेकिन मैं आज तक इस अपराधबोध से खुद को उबार नहीं सका हूं. तिलतिल जलता हूं. पलपल मरता हूं.

जलते अलाव: भाग 3

‘यस सर.’

‘मैडम, हैव ए लुक औन दीज पेपर्स,’ कागजों का पुलिंदा जरी की तरफ बढ़ाते हुए बोले प्राचार्य.

‘ह्वाट इज दिस, सर?’

‘आप के खिलाफ पेरैंट्स ने कंप्लेन की है कि आप क्लास में पढ़ाते समय बच्चों के मन में सांप्रदायिकता के कड़वे बीज बो रही हैं,’ प्राचार्य कुटिलता से मुसकराए.

‘नो, दिस इज एब्सौल्यूटली रौंग. आई हैड नैव्हर डन दिस टाइप औफ चीप टौक इन द क्लासरूम,’ जोर से चीखने के कारण जरी का चेहरा गुस्से से तमतमा गया, ‘दिस इज अ प्लान्ड कौंस्पिरेसी अगेंस्ट मी.’

‘आवाज धीमी कीजिए मैडम जरीना हमीद, ये लिखित कंप्लेंट्स हैं आप के खिलाफ, 1 नहीं 10-12. इन्क्वायरी से पहले स्कूल का हैड होने के नाते मुझ से रिपोर्ट मांगी गई है.’

सुन कर जरी की आंखों में हजारों अलाव सुलगने लगे.

‘सर, ये सारी कंप्लेंट्स फर्जी हैं. आई नो इट वैरी वैल. मैं एक सोशल स्टडीज की टीचर हूं. बच्चों को स्वस्थ सोच देना मेरी जिम्मेदारी है. छोटीछोटी घटनाओं के माध्यम से बच्चों के मन में धर्म निरपेक्षता की फीलिंग भरना मेरी मौरल ड्यूटी है. मैं अब तक 14 प्राचार्यों के साथ काम कर चुकी हूं. 7 अलगअलग शहरों में. मेरी पर्सनल फाइल उठा कर देखिए. कोई मैमो, कोई वार्निंग लेटर नहीं है. सर, बहुत सोचसमझ कर मेरे खिलाफ बनाई गई है यह साजिश. आई नो दैट वैरी वैल.’

‘इट मींस यू आर ब्लेमिंग टू मी? मैं ने कोई साजिश रची है? जानती हैं, आप के द्वारा अथौरिटी की इंसल्ट करने और उस पर बेबुनियाद ब्लेम लगाने के जुर्म में मैं आप को सस्पैंड कर सकता हूं,’ प्राचार्य ने जहरीला फन फुफकारा.

‘आप कुरसी पर हैं, इसलिए जो जी चाहे कर सकते हैं और अल्पसंख्यक महिला शिक्षिका को अपनी सचाई साबित करने की दलील पर सस्पैंड कर सकते हैं. सर, इट इज एनफ. आप ने जब से यहां जौइन किया है, मेरा नौकरी करना मुश्किल कर दिया है क्योंकि मेरा नाम जरीना हमीद है और मैं मुसलमान हूं और आप की दुश्मनी पूरी मुसलिम कौम से है,’ बोलते हुए हांफने लगी जरी.

‘आप की बेटी और बीवी को सांप्रदायिक दंगों में जिंदा जला दिया गया तो क्या उस की सजा आप मुझे देंगे? आप की जिंदगीभर की कमाई दंगाइयों ने लूट ली तो उस का बदला आप मुझ से मेरी नौकरी छीन कर लेंगे? क्योंकि मैं मुसलमान हूं. नो, नो, यू कांट डू दिस. आप चंद गुमराह लोगों की वहशियाना हरकत की सजा मुझे गुनाहगार साबित कर के देना चाहते हैं. अपने मन की धधकती आग को ठंडा करना चाहते हैं तो यह मैं किसी हाल में होने नहीं दूंगी. खुद को नीचा दिखलाने का कोई मौका आप को कतई नहीं दूंगी, नहीं दूंगी,’ कहती हुई जरी चैंबर से बाहर निकल गई और दूसरे दिन अपनी वीआरएस लेने की ऐप्लिकेशन हैडक्वार्टर भिजवा कर एक कौपी प्राचार्य को थमा आई.

प्राचार्य ने उस रात मुंह लगे चमचों के साथ अपनी कामयाबी का जश्न मनाया. ‘इसी तरह एकएक का सफाया कर दूंगा. और तब तक करता रहूंगा जब तक भारत में एक भी मुसलमान बाकी रहेगा.’

2 महीने बाद जरी की ऐप्लिकेशन हैडक्वार्टर ने मंजूर कर ली और वह बच्चों को अपने कमजोर पंखों में समेटे अपने पैतृक घर में वापस आ गई.

‘‘अब तुम्हीं बतलाओ नैना, मैं तुम्हें कैसे बतलाती कि मेरी 30 साल की ईमानदारी, काम के प्रति पूरा डिवोशन और 10वीं, 12वीं के मासूम बच्चों को कामयाबी की बुलंदियों तक पहुंचाने के बदले में मुझे क्या मिला…बेइज्जती, जिल्लत, जिंदगीभर के लिए लाचारी और मजबूरियां. धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ा कर मैं ने छात्रों के दिल से दूसरी कौम के प्रति उपजने वाली नफरत को जड़मूल से नष्ट करने की कोशिश की, उन्हें सांप्रदायिकता का घिनौना पाठ भला मैं कैसे पढ़ा सकती हूं, नैना.’’

जरी की आंसुओं से भीगी आवाज सुन कर मैं खुद पर नियंत्रण नहीं रख सका. लड़खड़ाते कदमों से कमरे से बाहर निकल कर दोनों हाथों से छाती को दबा लिया. दर्द का गुबार उठा और मैं बालकनी की रेलिंग पकड़ कर नीचे फर्श पर गिर सा गया. चेतनाशून्य होता दिमाग, चक्कर खाती आंखें, धौंकनी की तरह चलती सांसें सवाल करने लगीं, ‘जो शख्सीयत लहू बन कर मेरी रगों में 30 सालों से दौड़ रही है, जिस का तसव्वुर मेरी सांसों को जिंदगी देता रहा है उसे मैं ने और मेरी कौम ने धर्म और जाति के नाम पर क्या दिया? अपमान, तिरस्कार और अविश्वास. जीवनभर का घोर मानसिक आघात. वह मुसलमान होने से पहले एक इंसान है, सिर्फ इंसान, यह कभी नहीं सोचा किसी ने.’

बरसों बाद भी मैं अपनी कंपकंपाती उंगलियों से उस के आंसू पोंछ कर उस के सिर पर तसल्लीभरा हाथ रखने की हिम्मत नहीं जुटा सका.

 

#coronavirus: कोरोना की लड़ाई के क्या कर रहे नेता मंत्री

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को छोड़ दिया जाए तो बहुत कम ऐसे मंत्री है जो कोरोना संकट के समय जनता के बीच दिख रहे हो.कुछ लोगो ने सांसद और विधायक निधि से मदद करने की घोषणा की पर अब सरकार के नए फैसले के बाद वह मुद्दा दर किनार हो गया है. कल तक जो नेता मंत्री दिन भर तमाम समारोह में दिखते थे अब नही दिखते है. राजनीतिक सूत्रों का दावा है कि कनिका की वीवीआईपी पार्टी में कोरोना के डर को देखने के बाद इन सभी मंत्रियों ने खुद को घरो में कैद कर लिया. इसके बाद अपवाद स्वरूप कुछ लोग जनता के बीच कोरोना के संकट में भी पूरी तरह से सक्रिय है.

हेल्पलाइन और रसोई से मदद कर रहे कानून मंत्री :
इसके विपरीत उत्तर प्रदेश के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक ने कोरोना से निपटने और जनता को राहत देने के लिए बहुत ही सुनियोजित तरीके से काम कर रहे है. कानून मंत्री ब्रजेश पाठक ने अपने सरकारी आवास पर हेल्पलाइन खोली है. जिसको ज्यादातर वो खुद सुनते है. हेल्पलाइन पर आने वाली कॉल को रिकॉर्ड करके उनकी जरूरत के अनुसार से मदद की जाती है. ब्रजेश पाठक ने सड़क पर आनेजाने वॉले ऐसे लोगो के लिए रसोई का भी प्रबंध किया है जिनके पास खाने के लिए कुछ नही है. ब्रजेश पाठक कहते है कि   हेल्पलाइन पर ज्यादातर कॉल लखनऊ से ही आ रही है. जंहा जरूरत के हिसाब से मदद की जाती है. लखनऊ के बाहर से आने वाली कॉल के लिए वँहा के लोगो से सम्पर्क कर मदद के लिए कहा जाता है.

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निधि और वेतन में कटौती
केंद्र सरकार ने सभी सांसदों की सांसद निधि को 2 साल के लिए खत्म करके उसके पैसे का उपयोग ‘कोविड 19” से निपटने में खर्च करेगी. केंद्र सरकार ने यह भी योजना बनाई है कि सांसदों के वेतन से 30 प्रतिशत की कटौती की जाएगी. अब यही कानून उत्तर प्रदेश सरकार भी बनाने जा रही है. वो भी इस पैसे को कोविड 19 से निपटने में खर्च करना चाहती है.असल मे कॅरोना संकट के शुरू होते ही कई नेताओ ने अपनी सांसद और विधायक निधि से लाखों करोड़ों का बजट कोरोना से लड़ने के लिए देने की घोषणा करने लगे थे.
नेताओ के इस कदम की आलोचना जनता के बीच शुरू हो गई. जनता का मानना था कि यह पैसा सरकार विधायक और संसद को उनके क्षेत्रों में विकास काम को पूरा करने के लिए दिया जाता है. ऐसे में कोरोना से दान में केवल सरकार के एक खाते से दूसरे खाते में पैसे केवल ट्रांसफर हो होने थे. विधायक और सांसद अगर दान देना चाहते है तो अपने वेतन से दान दे.

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केंद सरकार ने अब इस मामले में कदम आगे बढ़ा कर निधि को 2 साल के लिए रोकने औऱ वेतन से 30 प्रतिशत की कटौती का नियम ही बना दिया है. उत्तर प्रदेश के बाद बाकी प्रदेशो में भी यही शुरुआत होगें. अब सरकार ने खुद योजना बना कर सांसदों और विधायको से पैसा लेना शुरू कर दिया है.

जलते अलाव: भाग 2

पूरे 30 सालों तक अनगिनत हादसों ने मेरी, नैना और जरी की जिंदगी को कई दर्दीले पड़ावों तक पहुंचा दिया.

2 बच्चों के बाद मेरी बेहद अहंकारी और खर्चीली पत्नी कमर से धनुष की तरह मुड़ कर पलंग के साथ पैबस्त हो गई. नैना के पति को लकवा मार गया और वह नौकरी करने के लिए मजबूर हो गई. जरी के पति भोपाल गैस कांड के शिकार हो गए. 2 मासूम बच्चों के साथ रोजीरोटी की जुगाड़ ने उसे भी दहलीज के बाहर कदम रखने को मजबूर कर दिया.

जरी के अम्मीअब्बू जिंदा थे. हर गरमी की छुट्टियों में बच्चों के साथ अपने शहर आती तो नैना अपने दुखदर्द में, शिकवेशिकायतें करने में जरी के अलावा किसी को शामिल नहीं करती.

मेरी पत्नी धनुषवात रोग को लंबे समय तक झेल नहीं सकी. दोनों बच्चों के पालनपोषण की जिम्मेदारी नौकरी के अतिरिक्त मुझे ही संभालनी पड़ती. पूरा दिन भागदौड़, व्यस्तता में कट तो जाता मगर रात, जैसे कयामत की तरह आग बरसाती. पनीली आंखों में जरी का चेहरा तैरने लगता. उस की नरम, नाजुक हथेली का हलकाहलका दबाव अकसर अपने माथे पर महसूस करता. रोज रात आंखें बरसतीं. तकिया भिगोतीं और तीसरे पहर कहीं आंख लगती तो जरी ख्वाब में आ जाती. मैं शादी के बाद भी एक पल के लिए उसे भूला नहीं.

6 कमरों की कोठी खाने को दौड़ती थी, इसलिए नैना को अपने पास बुला लिया. बच्चे बूआ से हिलमिल गए. गोया नैना ने मेरी गृहस्थी संभाल ली.

दूसरे दिन नाश्ते की टेबल पर मैं ने नैना के हाथों में जरी का कार्ड थमा दिया था.

‘‘दादा, कब मिली थी जरी आप से? कैसी है वह?’’ नैना ने बेचैन हो कर सवालों की झड़ी लगा दी, ‘‘दादा, अभी चलिए, प्लीज उठिए न.’’ नैना की जरी के प्रति आतुरता ने मुझे भी भावविह्वल कर दिया पर मैं ऊपर से शांत बना रहा.

‘‘पहले फोन तो कर लो,’’ मैं ने कहा.

‘‘नहीं, कोई जरूरत नहीं फोन की. क्या आप जानते नहीं कि वह 1 महीने से यहां है, फिर भी उस ने कोई खबर नहीं दी. इस का मतलब क्या है? हमेशा की तरह वह कोई न कोई जहर चुपचाप पी रही होगी.’’

नैना मुझ से भी ज्यादा जरी की खामोशी की जबान को समझती है. यह देख कर मैं उस की दोस्ती को सलाम करने लगा और जरी के घर चल दिया.

कौलबैल बजते ही जरी के छोटे बेटे ने दरवाजा खोला, नैना और मैं अंदर गए. जरी भी ड्राइंगरूम में आ गई. उदास आंखें, निस्तेज चेहरा और पतलेपतले होंठों पर जमी चुप्पी की मोटी पपड़ी. नैना ने उस के गले लगते ही शिकायत की, ‘‘यहां 1 महीने से कैसे? क्या इतनी लंबी छुट्टी मिल गई?’’

‘‘मैं ने वीआरएस ले लिया है,’’ चट्टान से व्यक्तित्व की कमजोर आवाज गूंजी.

‘‘व्हाट? वीआरएस लेने की क्या जरूरत पड़ गई?’’ नैना ने जरी का हाथ अपने हाथों में ले कर उतावलेपन से पूछा.

जरी हमेशा की तरह सूनी दीवार को घूरने लगी.

‘‘बच्चों की जिम्मेदारी अभी पूरी कहां हुई है. ऐसी कौन सी मजबूरी थी जरी जो तुम जैसी दूरदर्शिता और समझदार ने ऐसा बचकाना फैसला ले लिया?’’ नैना के सब्र का बांध टूटने लगा था.

‘‘यह मेरा फैसला नहीं था? मेरी मजबूरी थी,’’ जरी की भर्राई आवाज का शूल मेरे कलेजे में धंस गया. मैं पत्थर की तरह बैठा, सन्न सा उसे अपलक देखता रहा. उस की दर्दीली आवाज का एकएक शब्द मुझ पर हथौड़े की चोट करता रहा.

1 साल पहले जरी का प्रमोशन उत्तर प्रदेश के ऐसे शहर में हो गया, जो अपनी मिट्टी को सांप्रदायिकता के खून की होली से रंगता रहा और देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान को कलंकित करता रहा. जरी उस शहर की बलिदानी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से बहुत प्रभावित थी लेकिन रैस्टहाउस में कुछ दिन बिताने के बाद जब अपने लिए मकान तलाशने निकली तो लोग उस के चुंबकीय व्यवहार से प्रभावित हो कर किराया और अन्य औपचारिकताएं तय कर लेते. लेकिन जैसे ही उन्हें उस के धर्म का पता चलता, वे कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाते. पूरे 1 महीने की कोशिश के बावजूद किराए का मकान नहीं मिला.

स्टाफ मैंबर कोरी हमदर्दी जताते हुए व्यंग्य से पूछते, ‘मिल गया मकान मैडम?’

‘जी नहीं,’ जरी का संक्षिप्त जवाब उसे खुद को बुरी तरह आहत कर देता.

‘मुसलिम इलाके में क्यों नहीं ट्राइ करतीं?’

‘ऐक्चुअली वह काफी दूर है. बच्चों का काफी वक्त आनेजाने में ही बरबाद हो जाएगा.’

‘यह क्यों नहीं कहतीं मैडम कि मुसलमान बस्ती की गंदगी और परदेदारी की पाबंदी को आप खुद ही नहीं झेल पाएंगी,’ मिसेज खुराना ठहाका लगाते हुए व्यंग्य करतीं. हिंदू बहुसंख्यक स्टाफ, अल्पसंख्यक एक अदद महिला कर्मचारी पर, कभी लंच टाइम में, कभी कैंटीन में कोई न कोई कठोर उपहास भरा जुमला उछाल कर आहत करने का अवसर हाथ से न जाने देता.

वतन के लिए शहीद होने वाले मंगल पांडे जैसे जांबाज सिपाही का साथ सिर्फ हिंदुओं ने ही नहीं, मुसलमानों ने भी दिया था. तब कहीं तिरंगा शान से लालकिले पर लहराया था. लेकिन आज कौमपरस्ती की तंगदिली ने उस शहर के गलीकूचों में नफरत की आग जला कर देश के इतिहास को रक्तरंजित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. सांप्रदायिक दंगों में कितने बेगुनाहों के घर जले, कितने बेकुसूरों को नाहक मौत के घाट उतारा गया, कितनी बेवाएं, कितने यतीमों की चीखें शहर का कलेजाहिलाती रहीं. इस का हिसाब तो खुद उस शहर की जमीन, हवाओं और आसमान के पास भी नहीं है. नफरत की आग में नाहक वे लोग भी झुलसने लगे जो रोजीरोटी की आस में मजबूरन उस शहर के बाश्ंिदे बने थे.

जरी की परेशानी देख कर जल्द ही रिटायर्ड होने वाली महिला प्राचार्या ने अपने क्वार्टर में शेयरिंग में रहने की लिखित इजाजत दे कर अपनी सहृदयता दिखाई.

जरी ने साइलैंट वर्कर के रूप में प्राचार्या के दिल में जल्द ही जगह बना ली. उन्होंने जरी को ऐडमिशन इंचार्ज बना दिया. इस बदलाव ने स्टाफ में आग में घी का काम किया. प्राचार्या के विरोधियों को उन की आलोचना करने का एक शिगूफा मिल गया.

जरी की कर्मठता और अनुशासन ने आर्ट्स 11वीं, 12वीं के बिगड़े बच्चों को आपराधिक और उद्दंड जीवनशैली त्याग कर शिक्षा के प्रति समर्पित एवं अनुशासित जीवन जीने और महत्त्वाकांक्षी विद्यार्थी बनने की प्रेरणा दी. विद्यालय में होने वाले नित नए अर्थपूर्ण बदलावों ने, अकर्मण्य शिक्षकों के मन में, जरी के प्रति ईर्ष्या और द्वेष की भावना भर दी.

विद्यालय का बदलता रूप और विद्यार्थियों के मन में उपजी शिक्षा व पुस्तकप्रेम की भावना को जगा कर भविष्य की आशाओं के नए अंकुर प्रस्फुटित करने में जरी कामयाब रही.

प्राचार्या की रिटायरमैंट पार्टी में शामिल नए प्राचार्य के कानों में जरी को प्राचार्या का दायां हाथ बताने वाले स्तुतिभरे वाक्य पड़े तो उस के प्रति उपजी सहज उत्सुकता ने स्टाफ के कुछ धूर्त एवं मक्कार शिक्षकों को अपनी कुंठा की भड़ास निकालने का मौका दे दिया. 2 दिन में ही प्राचार्य ने जरी की पर्सनल फाइल का एकएक शब्द बांच लिया. 28 साल के सेवाकाल में प्राथमिक शिक्षिका के 2 प्रमोशन, इन सर्विस कोर्स की रिसोर्स पर्सन, पिछले स्कूलों में 10 सालों से ऐडमिशन इंचार्ज, ऐक्टिव, पजेसिव, रिसोर्सफुल, प्रोगैसिव शब्द, प्राचार्य की आंखों के कैनवास पर छप कर खटकने लगे. ‘तमाम मुसलमान, एक तरफ देश की जडे़ं खोद रहे हैं अपनी असामाजिक और गैरकानूनी गतिविधियों से, दूसरी तरफ अपनी ईमानदारी और कर्मठता का ढोल पीट कर खुद को देशभक्त साबित करने का ढोंग करते हैं,’ रात को अंगूरी के नशे के झोंक में प्राचार्य के मुंह से निकले इन शब्दों ने जरी के विरोधियों को उस के खिलाफ जहर उगलने के सारे मौके अता कर दिए.

चौथे दिन ही प्राचार्य क्वार्टर छोड़ने और उस के पद से नीचे का क्वार्टर का एलौटमैंट लेटर चपरासी ने जरी को थमा दिया. जरी ने कोई प्रतिरोध नहीं किया.

शांत, कर्मठ जरी का कोई भी कमजोर पहलू प्राचार्य के हाथ नहीं लगा तो इंस्पैक्शन के बहाने अकसर उस की कक्षा में आ कर बैठने लगे. बच्चों को अलगअलग बुला कर ‘जरी के टीचिंग मैथड से सैटिस्फाइड हैं या नहीं?’ लिखित में जवाब मांगने लगे.

28 साल का अध्यापन अनुभव प्राचार्य की बारबार नुक्ताचीनी के कारण धीरेधीरे अपना विश्वास खोने लगा. प्राचार्य वक्त- बे-वक्त उसे कक्षा से बुला कर ऐडमिशन के सिलसिले में नित नए सवाल पूछ कर, कभी टीचिंग को ले कर बच्चों के सामने अपमानित करने का मौका ढूंढ़ने लगे. जरी पलपल आहत होती रही पर अपने आत्मविश्वास को डगमगाने नहीं दिया.

प्राचार्य और उन के मुंहलगे चमचे एक तरफ तो शिक्षा को व्यापार बनाने पर तुले हुए थे दूसरी तरफ कर्म के प्रति कटिबद्ध और समर्पित जरी भीड़ में भी एकदम तन्हा रह गई थी.

‘तुम प्राचार्य की कंप्लेन क्यों नहीं करतीं असिस्टैंट कमिश्नर से?’ सहेली, दिल्ली की उपप्राचार्या ने फोन पर सलाह दी थी.

‘मेरे रिटायरमैंट को 2 साल रह गए हैं. मेरी कंप्लेन पर इन्क्वायरी होगी. ऐसे में हो सकता है प्राचार्य कोई नया झूठा केस बना दें क्योंकि वे मालिक हैं स्कूल के, गवाह भी उन्हीं के, वकील भी उन्हीं के. नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनेगा? केस के चलते मेरे फंड के पैसे रोक दिए जाएंगे. मेरी पैंशन भी लागू नहीं होगी. नैनी, एक नौकरी ही तो है मेरा सहारा. पैसे न होंगे तो बच्चों को कैसे पढ़ा सकूंगी? उन का भविष्य अंधेरे से घिर जाएगा. इसलिए चुपचाप सहती रही…’ बोलते हुए गला

भर्रा गया जरी का.

‘लेकिन नैना, उस दिन तो हद हो गई. जब चपरासी को भेज कर शाम 6 बजे मुझे अपने चैंबर में बुलवाया प्राचार्य ने,’ जरी ने हिचकियों के बीच अपने पर किए गए जुल्म की कहानी का एक और पृष्ठ खोला.

‘गुड ईवनिंग सर.’

‘गुड ईवनिंग.’

‘सर, आप अभी तक औफिस में?’

‘यस, कुछ कौन्फिडैंशियल रिपोर्ट हैडक्वार्टर भेजनी है, इसलिए…’

‘सर, मुझे क्यों बुलाया आप ने?’

‘फर्स्ट औफ औल, लेट मी क्लीयर मिसेज जरीना हमीद. वी आर सैंट्रल गवर्नमैंट एंप्लाई. वी कुड बी कौल ऐट एनीटाइम. वी आर द सर्वेंट औफ ट्वंटीफोर औवर्स, अंडरस्टैंड?’ प्राचार्य की आवाज का खुरदरापन चुभ गया जरी को.

#lockdown: बड़े शहरों में भी पॉपुलर हुई देसी कोल्डड्रिंक शिकंजी, ऐसे बनाएं

शिकंजी गर्मी के दिनों का सबसे ज़्यादा पसन्द किया जाने वाला पेय है. यह अब छोटे बड़े शहरों में सड़कों पर बिकता देखा जा सकता है.

दिल्ली और आसपास की जगहों सहित उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और दूसरी जगहों पर भी बिकने लगी है. शिकंजी गरमी के पेय पदार्थ में सबसे तेजी से आगे बढी है य़ह साधारण लोगों के लिये रोजगार का साधन भी बन गई है. शिकंजी का कारोबार करने के लिये किसी तरह के बडी पूंजी की जरूरत नहीं पडती है.  हाथ से चलने वाले एक ठेला में सभी कुछ रखा जा सकता है.  शिकंजी बेचने के लिये भीडभाड वाली जगह का चुनाव करना ठीक रहता है. इसकी सबसे ज्यादा बिक्री दिन में उस समय होती है जब गरमी अपनी चरम पर होती है ग़रमी से बचने के लिये लोग शिकंजी पीते है. शिकंजी एक ओर पीने वाले की सेहत सुधारती है. उसके शरीर में होने वाली पानी की कमी को पूरा करती है. दूसरी ओर शिकंजी बेचने वाले को मुनाफा कमाने का मौका देकर उसकी आर्थिक हालत को सुधारती है.

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20 से 30 रूपये लागत से बिकने वाली शिकंजी की कीमत आधी से भी कम होती है ज़रूरत इस बात की होती है कि शिकंजी में कालानमक के साथ डाला जाने वाला मसाला ठीक से तैयार हो. इसका स्वाद अच्छा हो. इसको साफ सुथरे तरीके से तैयार किया जाये क़ालानमक कई बार खिसकने लगता है ज़ो स्वाद को बेस्वाद कर देता है. इस बात का खास ख्याल शिकंजी बनाते समय रखना चाहिये. बरफ उतनी ही मिलाये जो पीने वाले को पंसद हो क़ुछ लोग ज्यादा ठंडी शिकंजी पसंद नहीं करते है. ऐसे में पीने वाले का ध्यान जरूर रखना चाहिये. शिकंजी मुख्यत: नीबू के रस नमक आर चीनी को पानी में मिलाकर तैयार किया जाता है.

कैसे बनाये शिकंजी :

4 गिलास शिकंजी बनाने के लिये 2 नीबू 8 चम्मच चीनी की जरूरत होती है क़ालानमक और मसाला स्वाद के अनुसार डाले. शिकंजी में बरफ के टुकडे डालने के बजाये बरफ को मिक्सी में पानी के साथ मिलाना ठीक रहता है. सबसे पहले नीबू का रस निकाल ले. इसमें चीनी मिलाक र आपस में ठीक से मिक्स कर दे. पानी और बरफ को मिक्सी में डाल कर मिला दे. इसमें नीबू रस और चीनी वाला घोल डाल दे. अब काला नमक और मसाला डाल कर मिक्सी में मिला दे. गिलास में डालकर पीने वाले को दे दे.
शिकंजी केवल ठेले पर ही नहीं बिकती ग़रमी के दिनो में कुछ बडे होटलो में यह मिलती है. वहां इसको नीबू के पतले पतले टुकडों से सजाया जाता है ग़रमी के दिनों में हराभरा अहसास दिलाने के लिये नीबू के पतले टुकडे के साथ पुदीना की पत्ती से सजावट भी की जाती है.

#lockdown: लॉक डाउन में किसानों पर गिरी गाज

बेचारे आम किसानों की समस्या कम होने के बजाय और भी बढ़ती जा रही है. एक ओर कोरोना की महामारी ने किसानों की कमर तोड़ दी है, वहीं बुंदेलखंड के किसानों पर बैंक से लिए गए कर्ज की वसूली के फरमान मिलने की गाज गिरी है, इस से आम किसान हैरानपरेशान हैं.

पूरे देश में लॉक डाउन की स्थिति बनी हुई है. इस दौरान सभी लोगों को घरों में बंद रहने को मजबूर कर दिया गया है और बहुत से लोगों के लिए रोजीरोटी का संकट पैदा हो गया है, वहीं उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड से एक ऐसी खबर आई है जिस ने सब को चौंका दिया है.

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बुंदेलखंड के ललितपुर जिले में बैंक ने किसानों के घर कर्ज जमा न करने के चलते कुर्की के नोटिस भेज दिए हैं.नोटिस मिलने के बाद गांव के किसान अपनी तमाम परेशानी को भूल इस तरह की परेशानी में उलझ गए हैं.

दरअसल, ये घटना ललितपुर जिले लवारा कला गांव की है. इस गांव के कई किसानों पर यूपी ग्रामीण बैंक का कर्ज बकाया है. लिहाजा, बैंक ने इस किसानों के खिलाफ सख्त एक्शन लिया है. बैंक ने ऐसे कई किसानों के घर कुर्की के नोटिस भेजे हैं. किसानों के पास ये नोटिस मार्च के आखिरी दिनों में पहुंचे हैं.

इस नोटिस के बाद अब किसानों का कहना है कि पिछले साल फसल बर्बाद हो गई थी, वहीं इस साल फसल तो काफी अच्छी हुई है, लेकिन लॉक डाउन होने की वजह से न तो वे अपनी फसलों को समय पर काट पा रहे हैं और न ही अभी बाजार में उसे बेच पा रहे हैं. ऐसी स्थिति ने उन्हें घोर संकट में डाल दिया है.

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साथ ही, किसानों की यह भी शिकायत है कि जब सरकार ने सभी बैंकों को फिलहाल कर्ज न वसूलने के लिए कहा गया है, तो ऐसे में उन के घरों पर यूपी ग्रामीण विकास बैंक का नोटिस आना चिंता की बात है.

कोरोना के चलते लॉक डाउन होने के कारण पूरे देश में सरकार ने तमाम किस्म की छूट दी है. बैंकों से 3 महीने तक ईएमआई में राहत देने की मोहलत दी गई है. ऐसे में बुंदेलखंड के किसान कुर्की नोटिस मिलने से सदमे में हैं.

#coronavirus: युद्ध स्तर पर काम करके बचा जा सकता है कोरोना से

कोरोना का प्रकोप ने पुरे दुनिया को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि जीवन के लिए स्वास्थ्य रहना कितना जरुरी हैं. आज अपने देश में कोरोना से लड़ने के लिए स्वास्थ्य के क्षेत्र में युद्ध स्तर पर कार्य हो रहा है. लेकिन क्या आप जानते है हमारा देश इससे पहले स्वास्थ्य को लेकर कितना खर्च कर आ रहा है और कितनी तैयारियां थी . तो आइये जानते है  –

* ‘स्वस्थ भारत मिशनपर कोरोना का असर :-  मोदी सरकार अपने सबसे बड़े अभियान “स्वस्थ भारत” अभियान के माध्यम से एक सेहतमंद  भारत का निर्माण करने में ही लगी थी. तब तक देश में कोरोना का प्रकोप आ गया.  देश में कैंसर , ट्यूमर ,  मधुमेय, उच्च रक्तचाप, टीवी, हार्टअटैक, श्वास की बीमारियां,चर्म रोग,अनिद्रा और मौसमी बीमारियों एक सीमा से अधिक वृद्धि दर्ज कराकर  “स्वस्थ भारत” अभियान के रास्ते में रोड़ा बन ही रहे थे कि एक और वैश्विक महामारी ने ‘ स्वस्थ भारत मिशन’  का कमर तोड़ने को तैयार हो चुकी है.

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* अब बढ़ाना होगा स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च :- स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्चों पर ध्यान दे तो पत्ता चलेगा कि जीडीपी का एक मामूली हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया जाए, जो 2 फीसदी से भी काम है. सार्वजनिक खर्च का मात्र 1.28 फीसदी ही स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च होता हैं. मोदी सरकार ने इसे साल 2025 तक यह औसत 2.5 फीसदी तक ले जाने का लक्ष्य है. जो भविष्य की बाते है. आकस्मिक वैश्विक महामारी कोरोना संकट आने से सरकार को भी यह समझ में आ गया होगा कि स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च को अब बढ़ाना होगा. ताकि स्वास्थ्य सेवा को समाज के हर तबके तक पहुंच जाये.

* अलग अलग कारण से नित्य नए मामले रहे है :- सरकार यह कह रही है कि कोरोना से लड़ने के लिए वह पहले से तैयार थी. समय पर लॉक डाउन कर इसे काबू में लाने के लिए वह हर संभव कोशिश कर रही है. देश के कुल 640 जिले में लॉकडाउन लगा दिया गया है, करीब 130 करोड़ आबादी को उनके घरों तक सीमित करके रख दिया गया है. फिर भी नित्य नए मामले बढ़ रहे है, जिनके अलग अलग कारण है. देश में 07 अप्रैल 2020 , सुबह  9 बजे तक कोरोना का संक्रमण 4421 लोगों को अपनी चपेट में ले चुका है और वही 114 की मौत हो चुकी है , वही 325 लोग ठीक हो पर अस्पताल से घर जा चुके हैं .

* अमेरिका में सबसे अधिक संक्रमण :-  अमेरिका में देश का जीडीपी का 18 फीसदी स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया जाता है. कोरोना पर सही समय पर जागरूपता ना हो पाना और देरी से लॉक डाउन का फैसला ने इस देश को कहा लाकर खड़ा कर दिया ये से छिपा नहीं है.विश्व के सुपर पावर अमेरिका पर कोरोना के कहर के इस कदर बरस रहा है कि विश्व के सभी देश पीछे छूट गये. 07 अप्रैल 2020 , सुबह  09 बजे तक कोरोना का संक्रमण 367,758 लाख लोगों को अपनी चपेट में ले चुका है और 10981 की मौत हो चूका है .वही 19788 लोग ठीक हो पर अस्पताल से घर जा चुके हैं .

पौने तीन लाख लोग इस बीमारी से ठीक हो चुके है :- पुरे विश्व में 204 देश इस बीमारी के गिरफ्त में है. अभी तक साढ़े13 लाख से अधिक लोग इसके चपेट में आ चुके है, वही 75 हजार से अधिक लोग इसके कारन मरे जा चुके है , इन सबके बीच अच्छी खबर यह है कि पुरे विश्व में करीब  पौने तीन लाख लोग इस बीमारी से ठीक होकर घर पहुंच चुके है.

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* आइसोलेशन बेड वाले अस्पताल के बढ़ाया जा रहा है :-    देश के स्वस्थ्य क्षेत्र पर नजर डाले तो तस्वीर साफ है कि हम कितने तैयार थे और अभी कितना तैयारी करना है. अभी देश में औसतन 84,000 लोगों पर एक आइसोलेशन बेड है और 1826 लोगों पर एक अस्पताल बेड है. केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारों ने भी नए अस्पताल बनाने के दिशा में काम कर रही है.  भारतीय रेलवे ने अभी हाल में कहा कि वह 20 हजार रेलगाड़ियों के बोगियों को औसतन आइसोलेशन बेड वाले अस्पताल बनाने के दिशा काम कर रही है. जल्दी ही यह तैयार कर लिया जायेगा .

* भुनेश्वर में शुरू हुआ दूसरा सबसे बड़ा कोविड़-19 अस्पताल :-  सरकार ने सोमवार को बताया कि ‘महानदी कोल्फील्ड्स लिमिटेड (एमसीएल) भुवनेश्वर स्थित कोविड-19 अस्पताल का सभी खर्च केंद्र सरकार वहन करेगी. यह देश का दूसरा सबसे बड़ा कोविड़-19 अस्पताल होगा. इन खर्चों में मरीजों के इलाज पर होनेवाला खर्च भी शामिल है जिसके लिए एमएलसी ने 7.31 करोड़ रु. की धनराशि अग्रिम रूप में जारी की है. यह अस्पताल ओडिशा के लोगों के लिए एक बड़ी चिकित्सा परिसंपत्ति है.  इस अस्पताल में 500 बिस्तरों तथा वेंटिलेटर की सुविधा समेत आईसीयू के 25 बिस्तरों की सुविधा उपलब्ध है. ओडिशा सरकार ने सोमवार से यह अस्पताल शुरू कर दिया गया है . इसके पहले स्वास्थ्य मंत्री एम्स, झज्जर गए थे और यहाँ के सुविधाओं को देखा था.  यह  300 बिस्तरों वाले आइसोलेशन वार्डों से युक्त है और यह कोविड-19 के समर्पित अस्पताल के रूप में कार्य करेगा.

* भारतीय रेलवे ने युद्ध स्तर पर कर रही है आपात स्थिति से लड़ने की तैयारी :-   कोविड 19 से पार पाने के प्रयासों में सहयोग देने के क्रम में भारतीय रेलवे अपनी पूरी ताकत और संसाधन लगा दिए हैं.  इतने कम समय में उसने अपने 5,000 कोच को आइसोलेशन (एकांत) कोच में तब्दील करने के शुरुआती लक्ष्य में 2,500 कोच के साथ आधा लक्ष्य हासिल कर लिया है. सोमवार को बताया कि रेलवे के विभिन्न मंडल कार्यालयों ने इतने कम समय में असंभव से लग रहे इस कार्य को लगभग पूरा कर लिया है. लगभग 2,500 कोचों में बदलाव के साथ अब 4,000 आइसोलेशन बेड आपात स्थिति के लिए तैयार हैं.  वही भारतीय रेलवे में रोजाना औसतन 375 कोचों में बदलाव किया जा रहा है. देश के 133 स्थानों पर यह काम किया जा रहा है. इन कोचों में चिकित्सा परामर्शों के तहत बताये गए सभी सुविधाएं होंगी. इन आइसोलेशन कोचों को सिर्फ आपात स्थिति के लिए तैयार किया जा रहा है.

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 * स्वास्थ्य कर्मचारी के क्षमता बढ़ने में लगी है सरकार :-  करीब 6 लाख डॉक्टर कम हैं और करीब 20 लाख नर्स, मेडिकल स्टाफ आदि की भी जरूरत है. इसे  पूरा करने में सरकार से लगी है . केंद्र सरकार ने जहाँ एक तरफ एम्स से सभी अस्पतालों को जुड़ने का काम किया है , वही रिटायर डॉक्टर को काम पर आने को कह रही है . रेलवे ने डॉक्टर भर्ती के लिए नोटिफिकेशन निकला है. सभी राज्य सरकार भी अपने क्षमता को बढ़ने में जुटे है.

* घर में रह कर मदद करे :-  कोरोना के विस्तार को रोकना है तो जरूरी है क्वारेंटीन और सामाजिक दूरी को अनिवार्य रूप से माना जाये. युद्ध स्तर पर काम करके और सावधानियां बरत कर हम कोरोना की चुनौतियों को झेल सकते हैं . अभी हमारा देश  अमेरिका, इटली,चीन , ईरान, विट्रेन और स्पेन  की तुलना में अपेक्षाकृत सुरक्षित लग रहे हैं. इस सुरक्षित माहौल को बनाये रखने के लिए जरुरत है हम घर में रहे और सरकार को कोरोना से युद्ध में मदद करे.

 

coronavirus: कोरोना संकट के दौर में भी कायम है हिन्दू-मुस्लिम मुद्दा

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के चेयरमैन और नदवा कॉलेज के प्रमुख मौलाना राबे हसनी नदवा ने नदवा कॉलेज में छात्रों के द्वारा कोरोनो के लिए कैंडिल जलाने की घटना को सही नही माना और छात्रों से नाराजगी जाहिर की है.

कहते है संकट के समय दुश्मन भी दुश्मनी भूल कर एकजुट हो जाते है. जब बाढ़ आती है तो सांप जैसे खतरनाक जीव भी चुपचाप एक कोने में सिकुड़ कर बैठ जाते है. लेकिन “कोरोना संकट” के इस दौर में भी देश मे हिन्दू-मुस्लिम एक जुट हो कर संकट का मुकाबला नही कर रहे.

उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद और बरेली जिलों में झगड़ो के बाद यह साफ हो गया कि “कोरोना  संकट” के समय भी हिन्दू मुस्लिम आपस मे एकजुट नही हो पा रहे. इलाहाबाद में छोटी सी बात में हत्या हो गई तो बरेली में पुलिस टीम पर हमला करके पुलिस अधिकारी को घायल कर दिया गया.

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निशाने पर जमात :

दिल्ली में जमात की बैठक के बाद बड़ी संख्या में कॅरोना प्रभावितों में जमात के लोगो के मिलने के बाद यह तनाव पूरे देश मे फैल गया. जिस तरह से प्रशासन और सरकार ने जमात में शामिल लोगों को चिन्हित किया उससे कोरोना संकट कम हुआ या नही पता नही चल रहा पर हिंदू मुस्लिम समुदाय के बीच दूरियां बढ़ गई. इसमे सोशल मीडिया की भूमिका बहुत असमाजिक रही. सोशल मीडिया पर जमात के बहाने आपस मे टकराव होने लगता है. इस विचारधारा के लोग मानते है जैसे कोरोना संकट केवल जमात के कारण ही फैल रहा है.

असल मे सोशल मीडिया पर जो बातें उठ रही है उनके पीछे राजनीतिक कारण भी है. उत्तर प्रदेश में सरकार से जब लॉक डाउन खोलने पर सवाल किया गया तो प्रदेश सरकार के अफसरों ने अपने बयान में कहा कि जमात के कारण घटनाएं बद्व गई इस कारण अभी कुछ नही कहा जा सकता है. अफसरों के बयान से कोई भी यह सोच सकता है कि अगर जमात के लोगो ने गड़बड़ी नही की होती तो 14 अप्रैल से लोक डाउन खुल सकता था. हो सकता है कि जमात के कारण हालत कुछ और ज्यादा खराब हो रहे हो पर इसको मुद्दा बनाने से आपसी समन्वय खराब हो रहा है.

वोट बैंक की चिंता

जमात को लेकर सोशल मीडिया पर जो हालत बने है असल मे यह एक वोट बैंक की लड़ाई है. कॅरोना संकट के समय मे भी नेताओ में यह मुद्दा बना हुआ है. वो इस समय भी अपने धार्मिक मुद्दे से पीछे नही हटना चाहते है.

कोरोना संकट के समय नागरिकता कानून का विरोध कर रही महिलाओं को उनके धरने हटाने पर विवश किया गया. वँहा से बनी यह दूरी और भी बढ़ गई. सरकार के कहने पर कुछ मुस्लिम  धर्मगुरुओं में कैंडल जलाए तो कुछ उसके विरोध में आ खड़े हुई. ऐसे में जनता में यह भी एक मुद्दा बन गया.

देश मे ऐसा धर्मिक माहौल तैयार किया जा रहा है जिसमें किसी और धर्म मे लिए जगह नही बन रही है. धर्म का प्रभाव इस तरह बद्व गया है कि राजनीतिक दल भी इस मुद्दे पर ज्यदातर लोग चुप्पी साध गए है और जो लोग धर्म के प्रभाव पर बोल भी रहे तो बहुत छिपे शब्दो मे बोल रहे है.  कोरोना को लेकर जिस तरह से धार्मिककरण किया जा रहा है उससे साफ है कि देश मे कितनी भी बड़ी विपत्ति आ जाये वोट बैंक की चिंता पहले लोगो को होगी.

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