ऋतुपर्णो घोष ने अपनी बेहतरीन फिल्मों के जरिए संवेदना और संबंधों को ऐसा उकेरा जिस से भारतीय सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय मंच तक ख्याति मिली. रिलेशन से ले कर इमोशन तक को परखनेसमझने वाले ऋतुपर्णो की जिंदगी के पन्नों को उलट रही हैं साधना शाह.

महज 21 साल के फिल्मी कैरियर में 50 वर्षीय ऋतुपर्णो घोष भारतीय सिनेमा को एक विरासत दे गए. उन के कैरियर की शुरुआत बंगला फिल्म से हुई. यह भी सच है कि बंगाल की मिट्टी में एक से बढ़ कर एक निर्देशक पैदा होते रहे हैं. ऋत्विक घटक, सत्यजित रे, मृणाल सेन से ले कर गौतम घोष और संदीप राय तक...बहुत लंबी फेहरिस्त है. लेकिन 90 के दशक से पहले यहां के फिल्म उद्योग में एक शून्य सा व्याप्त हो गया था. उस शून्य को युवा ऋतुपर्णो घोष ने भरा था. रिलेशन से ले कर इमोशन तक को परखनेसमझने का जो नजरिया ऋतुपर्णो के पास था वह तब के बहुत कम निर्देशकों में था. मानव स्वभाव की बारीकियों को बड़े ही सहजसरल अंदाज में सैलूलाइड के परदे पर उतारने का हुनर ऋतुपर्णो के पास था. यह अपने काम के प्रति समर्पण ही है कि लंबी नींद सोने से एक दिन पहले उन्होंने ‘सत्यान्वेषी’ फिल्म को पूरा किया.

1992 में ‘हीरेर आंगटी’ और फिर 1994 में ‘19 शे एप्रिल’ से ले कर 2013 में ‘सत्यान्वेशी’ तक बंगला, अंगरेजी और हिंदी में उन के द्वारा बनाई गई कुल 23 फिल्में भारतीय फिल्म उद्योग की थाती हैं. अपने 21 साल के कैरियर में ऋतुपर्णो की लगभग हरेक फिल्म को किसी न किसी राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. अभी उन की 3 फिल्में रिलीज होनी बाकी हैं.

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