कुछ अरसा पहले चीन ने अपने मुल्क में टैलीविजन पर प्रसारित होने वाले कई विदेशी शोज को प्राइम टाइम से बाहर कर दिया था. इस के पीछे चीन का मकसद देसी मनोरंजन और वहां के उद्योग को बढ़ावा देना था. भले ही इस फैसले के पीछे चीन का तानाशाही रवैया दिखता हो लेकिन उस की अपने देश की संस्कृति और मनोरंजन उद्योग की तरक्की के प्रति यह चिंता नाजायज नहीं कही जा सकती. वहीं, भारत में ठीक इस का उलटा हो रहा है. एक तो पहले से ही भारत में विदेशी मीडिया समूहों का वर्चस्व है, ऊपर से टीवी पर दिखाए जाने वाले ज्यादातर देसी सीरियल्स अमेरिकी शोज की भोंडी नकल या कहें देसी संस्करण बन कर रह गए हैं.

हमारे यहां प्रसारित होने वाले तकरीबन सभी रिऐलिटी शोज किसी न किसी विदेशी चैनल के शो की नकल होते हैं, खासतौर से अमेरिकी व ब्रिटिश शोज के, चाहे वह कौन बनेगा करोड़पति (हू वांट्स टू बी मिलेनियर) हो, कौमेडी नाइट विद कपिल (दी कुमार्स) हो, बिग बौस (बिग ब्रदर) हो, या फिर इंडियन आइडल (अमेरिकन आइडल), इंडियाज गौट टैलेंट (अमेरिकाज गौट टैलेंट), मास्टर शेफ (मास्टर शेफ आस्ट्रेलिया), इस जंगल से मुझे बचाओ (आई एम अ सैलिब्रिटी...गेट मी आउट औफ हिअर) या खतरों के खिलाड़ी (फिअर फैक्टर) हों. इन में से ज्यादातर शोज कौपीराइट ले कर बनाए गए हैं और कुछ वहां के शोज की मूल अवधारणा चुरा कर निर्मित किए गए हैं.

असल नकल साथसाथ

मजेदार बात यह है कि कई बार एक ही शो के देसी और विदेशी संस्करण एकसाथ टीवी के प्राइम टाइम पर देखे जा सकते हैं. उदाहरण के तौर पर एएक्सएन चैनल पर जब फियर फैक्टर आता था तो लगभग उसी दौरान कलर्स पर खतरों के खिलाड़ी का प्रदर्शन होता. ऐसा इसलिए चूंकि कई विदेशी चैनल भारत में टैलीकास्ट होने लगे हैं. बहरहाल, अमेरिकी कार्यक्रम को भारत में दिखाना कोई जुर्म नहीं है. समस्या है तो उन के कंटैंट को ले कर. दरअसल, भारत में प्रसारित होने वाले शोज के असल संस्करण अमेरिका और इंगलैंड के कल्चर के हिसाब से बने हैं. लिहाजा, उन में वहां के समाज की उन्मुक्तता, न्युडिटी, गालीगलौज और विचारधारा आना स्वाभाविक है. लेकिन जब इन के भारतीय संस्करण बनाए जाते हैं तो मामूली फेरबदल के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जाती है.

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