एक दौर में खौफ का दूसरा नाम बन चुके चन्दन तस्कर वीरप्पन को पकड़ने में प्रशासन को 20 साल लग गए.  इस चंदन तस्कर ने 97  पुलिस वालों, 184  नागरिकों और 900 हाथियों को मारा. बेहद हिंसक और क्रूर दिमाग वाले इस शख्स पर निर्देशक राम गोपाल वर्मा हिंदी फिल्म बना रहे हैं. फिल्म का कन्नड़ वर्जन पहले से ही कामयाब हो चुका है. रामू कहते हैं कि उन्हें हीरो की साफ़ सुथरी छवि से ज्यादा विलेन की खूंखार अदाएं ज्यादा भाती हैं. इसलिए उनकी फिल्मों के ज्यादातर किरदार बैडमैन इमेज वाले होते हैं.

फिल्मों के आरंभिक दौर में आदर्श हीरो की छवि के आगे विलेन पिद्दी सा लगता था. सूदखोर महाजन हो या सोने का स्मगलर. जब हीरो की किक विलेन पर पड़ती तो दर्शक जमकर ताली और सीटी बजाते. विलेन का किरदार करने वाले रंजीत जैसे कलाकारों को किसी सोसायटी में रहने के लिए चरित्र प्रमाण पत्र देना पड़ता था, बेचारे असल जिदगी के भी विलेन बन गए थे. उस ज़माने में अगर कोई हीरो विलेन का रोल करले तो करियर चौपट समझो. पर अब हालात उलट हैं. फिल्म का विलेन हीरो पर इस कदर भारी पड़ता है कि अवार्ड समेत दर्शकों की तालियाँ भी बटोर ले जाता है. बीते सालों में रिलीज फिल्मों के पैटर्न को देखें तो हीरो की गुडमैन इमेज पर बैडमैन भारी रहा है. शायद इसलिए अब नायक की भूमिकाओं में आते रहे एक्टर विलेन का रोल बड़े मजे से करते हैं.

हीरो विलेन का फार्मूला ध्वस्त :

फिल्मों में हीरो और विलेन की विभाजन रेखा अगर किसी ने तोड़ी है तो वह है समानांतर सिनेमा. मुख्याधारा के सिनेमा में जहाँ हीरो-विलेन का फार्मूला प्योर ब्लैक एंड व्हाइट शेड पर था तो वहीँ समानान्तर सिनेमा में हीरो और विलेन के शेड्स ग्रे थे. खामोश, अर्धसत्य, पार, आक्रोश, भूमिका, एक रुका हुआ फैसला, मंथन, मंडी जैसी फिल्मों में हीरो और विलेन के बीच का फर्क बेहद धुंधला है. इनमें नकारात्मक किरदार में वे एक्टर नजर आये जो आमतौर पर सकारात्मक भूमिकाओं के लिए जाने जाते थे. मसलन अमोल पालेकर ने खामोश और भूमिका में निगेटिव किरदार से सबसे ज्यादा चौंकाया. फिल्म बदलापुर तो फर्क करना मुश्किल हो जाता है कि विलेन कौन है कौन हीरो है. इस तरह हीरो विलेन की विभाजन रेखा को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभाई इस नए सिनेमा ने. देखतेदेखते मुख्यधारा की फिल्मों के भी पुराने फॉर्मूले ध्वस्त होते चले गए. प्रभावशाली कहानी और तगड़े किरदार अहम होते गए. आज के दौर के फिल्मकार भी अधिक प्रयोगधर्मी हैं और कलाकार भी. यही कारण है कि हीरो बेहिचक विलेन के रोल कर लेते हैं. दरअसल निगेटिव के बहाने हीरो के मुकाबले विलेन के किरदार के ज्यादा शेड्स होते हैं. जो उसे निगेटिव रोल करने के लिए मजबूर करते हैं.

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