बौलीवुड अभिनेता अभिषेक बच्चन की पहचान आज भी अमिताभ बच्चन का सुपुत्र होना ही है. यों तो वे बौलीवुड में एक दशक से ज्यादा समय से फिल्में कर रहे हैं लेकिन यादगार सिनेमा के नाम पर उन के पास दर्जनभर फिल्में भी नहीं हैं. फिल्म समीक्षकों ने इक्कादुक्का फिल्मों को छोड़ कर हमेशा उन के अभिनय की मौलिकता पर सवाल उठाए हैं. उन के कैरियर पर गौर फरमाएं तो हिट फिल्मों की फेहरिस्त बेहद छोटी है और ज्यादातर हिट फिल्मों में अभिषेक सोलो अभिनेता नहीं थे. मसलन, धूम सीरीज, दस, बोल बच्चन जैसी फिल्में सिर्फ अभिषेक की बदौलत हिट नहीं कही जा सकतीं. अपनी पहली फिल्म रिफ्यूजी से ही आलोचना के शिकार अभिषेक को ऐश्वर्या राय बच्चन व अमिताभ बच्चन की लोकप्रिय छवियों के नीचे ही देखा जाता है. सोशल मीडिया में तो उन्हें भी राहुल गांधी की तर्ज पर ‘पप्पू’ टैग से चुटकुलों का हिस्सा बनाया जाता है. कहीं उन पर सिनेमा का राहुल गांधी होने का मजाक किया जाता है तो कहीं पिता भरोसे चलते कैरियर का ताना भी मिलता है. यों तो उन्हें शांत स्वभाव का कलाकार माना गया है लेकिन कई मौकों पर वे भी सलमान खान की तरह मीडिया को तेवर दिखा चुके हैं. हालिया फिल्म औल इज वैल के प्रमोशन के दौरान एक फैन को, उन की फोटो खींचते समय, धमकाना हो या फिर बेटी को ले कर मीडिया से उन का नाराज होना रहा हो.

सुस्त गति में चलते उन के कैरियर ने उन्हें औसत दायरे के अभिनेता तक सीमित कर रखा है. शायद अभिषेक भी अपनी क्षमताओं और कैरियर के भविष्य से वाकिफ हैं, इसलिए व्यावहारिकता दिखाते हुए अपने पिता के साथ न सिर्फ फिल्में प्रोड्यूस कर रहे हैं बल्कि एक तरफ वे प्रो कबड्डी लीग की फ्रैंचाइजी ले कर पिंक पैंथर नामक कबड्डी टीम के मालिक बन चुके हैं तो दूसरी तरफ पिछले साल से फुटबाल खेल के प्रोत्साहन के लिए शुरू हुई इंडियन सुपर लीग की फ्रैंचाइजी ले कर वे चेन्नई टीम के सह मालिक हैं. बौलीवुड में अपने 15 साल के कैरियर में अभिषेक बच्चन ने कई पड़ाव पार किए हैं. अभिनय के क्षेत्र में सफलता व असफलता के हिचकोले झेलते हुए वे निरंतर अग्रसर हैं लेकिन उन की नई फिल्म आल इज वैल बुरी तरह से फ्लौप हो गई है. उन का मानना है कि वे जिस मुद्दे पर लंबे समय से आज के यूथ से बात करना चाह रहे थे उसी मुद्दे पर उन्हें फिल्म आल इज वैल ने बात करने का सुनहरा अवसर दे दिया. उन का कहना है, ‘‘यह फिल्म आज के समाज में पितापुत्र के बीच बढ़े कम्युनिकेशन गैप पर बात करती है. कुछ लोग इसे पीढि़यों का टकराव कहते हैं. पर कड़वा सच यह है कि पितापुत्र चाहे जितने समय तक एकदूसरे से झगड़ कर अलग रहें, कभी न कभी तो वे एकदूसरे की मदद के लिए आते ही हैं.’’

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