ऊपरी तौर पर भले ही समाजवादी पार्टी का बंटवारा चुनाव के पहले टल जाये पर ‘तेरा-मेरा’ के विवाद में सपा को अब अपने ही बागी उम्मीदवारों का सामना करना पड़ेगा. इससे सबसे अधिक खुशी बसपा-भाजपा को है. भाजपा को अगड़े और पिछड़े वोट अपनी तरफ आते दिख रहे हैं तो बसपा को मुसलिम वोटों के अपनी ओर आने का भरोसा हो गया है. अब वह ज्यादा से ज्यादा मुसलिम प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारने की फिराक में हैं.
कुछ माह पहले सपा के शुभचिंतक पार्टी के विवाद को सुलझाने के लिये अपना पूरा दमखम लगाये थे वह भी अब चुप हो बैठ गये हैं. सपा के सबसे बड़े सलाहकार आजम खां जो मुलायम और अखिलेश दोनों के करीबी थे वह पूरी लड़ाई को इतिहास से जोड़ कर देख रहे हैं.
आजम खां कहते है, ‘सपा में जो कुछ हो रहा है उसे इतिहास के सबसे बुरे दिनों के नाम से लिखा जायेगा. औलाद बाप के नाम से और बाप औलाद के नाम से नफरत करेगी. सपा के लोग खुद मायूस हैं. भाजपा जश्न मना रही है.’
सपा के इस मोड़ पर राजनीतिक समीक्षक और लेखक शिवसरन सिंह गहरवार कहते है, ‘सपा में अहम का टकराव है. लोकतंत्र में जनता उसके साथ खड़ी होती है जो उसको मजबूत दिखता है. सपा का बड़ा वर्ग अखिलेश यादव पर अपना भरोसा कर रही है. अब अखिलेश को यह साबित करना है कि वह दबाव में झुकते हैं या निखर कर सामने आते है.’
समाजवादी पार्टी में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिये प्रत्याशियों की सूची जारी होते ही ‘तेरा-मेरा’ का झगड़ा शुरू हो गया. प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव की सूची और मुख्य मंत्री अखिलेश यादव की सूची जब सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के पास पहुंची और वहां से नई सूची जारी हुई तो उसमें अखिलेश समर्थकों का पत्ता साफ था. इसके बाद अखिलेश ने अपनी सूची जारी कर अपने लोगों को चुनाव लड़ने की इजाजत दे दी. जिसके बाद हालत बिगड़ गये. हो सकता है कि सपा में पार्टी लेवल पर कोई बंटवारा न हो पर पार्टी के बागी अपने लोगों के ही खिलाफ चुनाव लड़ेंगे, जिससे सपा को बड़ा नुकसान होगा.