नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में स्मृति ईरानी के विभाग को बदले जाने को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुए मई 2014 के बाद के घटनाक्रम से जोड़ा जा रहा है. इस में कितना सच है, यह तो अमित शाह और नरेंद्र मोदी ही जानते हैं पर स्मृति ईरानी ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और कन्हैया कुमार का नाम विश्वभर में फैला कर उन्हें विवादास्पद कर दिया था.

दिल्ली के दक्षिणपश्चिम कोने में स्थित, देशदुनिया में विख्यात जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से बदलाव की आवाजें सब से अधिक उठती हैं. राजनीतिक, सामाजिक विसंगतियां, विद्रूपता के सवाल यहां सुलगते रहते हैं सरकार चाहे कांग्रेस की हो, मिलीजुली या एनडीए की. व्यवस्था के खिलाफ क्रांति, आंदोलन और विद्रोह की चिंगारियां यहां से उठती रही हैं पर हार्वर्ड, औक्सफोर्ड विश्वविद्यालयों जैसी खूबसूरत इमारतें, चारों तरफ हरियाली, फलफूल, पेड़पौधों से युक्त माहौल यहां नहीं दिखता. जेएनयू में तो दिल्ली विश्वविद्यालय कैंपस जैसा पौश, साफस्वच्छ, कालेजों के आगे खड़ी शिक्षकों, छात्रछात्राओं की चमचमाती कारों जैसा वातावरण भी नहीं है.

आप गूगल खोल कर हार्वर्ड, औक्सफोर्ड विश्वविद्यालयों की इमेज पर क्लिक करेंगे तो उन के परिसर में शानदार खूबसूरत इमारतें, चारों और हराभरा मनमोहक वातावरण और खासतौर से शांत, प्रसन्नचित्त, चमकते चेहरे वाले छात्रछात्राएं दिखाई देते हैं. वहीं जेएनयू की इमेज क्लिक करने पर परिसर में

दूरदूर फासले पर खड़े पुराने, कुछ जर्जर भवन, पत्थर, चट्टानें, सूखी जंगली घास, कंटीले झाड़झंखार और हवा में मुट्ठियां ताने, झंडे, बैनर थामे आक्रोशित छात्रछात्राओं की तसवीरों की भरमार देखने को मिलेगी.

मुनीरिका इलाके की ओर से जेएनयू के बड़े से मुख्यद्वार में प्रवेश करते हैं तो सामने बैरिकेड लगे हैं. 4-5 सुरक्षा गार्ड गाडि़यों को इंट्री करा के आगे बढ़ने देते हैं. पैदल जाने वालों को कोई रोकटोक नहीं है. लगभग 300 मीटर चल कर एक और बैरिकेड है. यहां 2 गार्ड बैठे हैं जो किसी को नहीं रोकते. आगे बढ़ेंगे तो लगेगा आप किसी जंगल में बसी बस्ती में प्रवेश कर गए हैं. बाईं ओर साधारण किस्म के क्वार्टर टाइप मकान बने हैं. दाईं तरफ जंगल, सूखे पेड़पौधे, बड़े पहाड़ी पत्थर, सड़क से हट कर स्टूडैंट यूनियन का कार्यालय, सड़क के किनारे होस्टलों का मार्ग दर्शाते बोर्ड, दूरदूर फासलों पर भवन बने नजर आते हैं.

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