मोदी सरकार की ‘सफलता’ इस बात की मिसाल है कि मीडिया और संगठित प्रचारतंत्र के जरिये एक असफल सरकार को सफल दिखाया जा सकता है. यह प्रमाणित किया जा सकता है, कि सरकार की उपलब्धियां बेमिसाल हैं. भारत के राजनीतिक परिदृश्य में यही हो रहा है.

कोई नाराज हो, पत्थर फेंके या जूता, जहां भी मौका मिले, वह अपना विरोध दर्ज कराये कोई फर्क नहीं पड़ता. सरकार अपनी सफलता दिखा रही है. प्रचारतंत्र उसे प्रचारित कर रहे हैं, मीडिया इसे मोदी के लिये दीवानगी दिखा रही है.

यह बात किसी भी लोकतंत्र और देश की आम जनता के लिये तय है. सरकार ऐसा क्यों कर रही है? यदि आप सवाल करेंगे, तो अपने को खतरों से घिरा हुआ पायेंगे. मोदी सरकार के पीछे की ताकतें जितनी संगठित हैं, उतनी ही मजबूत है. और उनकी सोच देश, दुनिया और आम लोगों के लिये उतनी ही खतरनाक हैं. भाजपा अब प्रतिक्रियावादी, छोटे बनियों की पार्टी नहीं रह गयी है, वह राष्ट्रीय, बहुराष्ट्रीय निजी कम्पनियों के हितों को पूरा करने वाली पार्टी बन गयी है. और संघ की हिन्दूवादी सोच हिन्दू राष्ट्रवाद को आक्रामक बना रही है. वित्तीय ताकतें भारतीय लोकतंत्र के विरूद्ध वित्तीय तानाशाही को बढ़ा रही हैं, और संघ, भाजपा तथा उसके सहयोगी संगठन राजनीतिक तानाशाही के लिये काम कर रही है.

सरकार अपनी असफलताओं की जानकारी आम लोगों तक पहुंचने नहीं दे रही है, और उसका प्रचारतंत्र तथा कारपोरेट हितों से संचालित मीडिया सिर्फ सफलतायें दिखा रही है. आने वाले कल के सुखद सपने दिखा रही है. फेके गये जूतों पर भी सोने का बर्क चढ़ा रही है. मोदी को नायाब, बेमिसाल और ‘देश में ऐसा कोई नहीं हुआ’ के नजरिये को फैला रही है. और जिस तरह, जिस अंदाज में यह किया जा रहा है, उसे देख कर यही लग रहा है, कि इस झूठ को सच दिखाने के लिये वह किसी भी हद को लांघ सकती है. लोकतंत्र और जनमत का भी लिहाज नहीं करेगी.

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