पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कतई एक ऐसी शख्सियत नहीं कहा जा सकता जिस पर बन रही फिल्म को लोग भागते हुये देखने की जहमत उठाएंगे. व्यक्तिगत हो न हो, पर मौनी कहे जाने वाले मनमोहन की राजनीतिक ज़िंदगी जरूर घटना प्रधान रही है, वे एक ऐसे पीएम थे जो उतना ही गंभीर था जितना कि दिखता था. सोनिया-राहुल गांधी की कठपुतली कहे जाने पर उन्होंने कभी एतराज नहीं जताया, हालांकि इस खिताब पर पीएम रहते उन्होंने कभी प्रसन्नता भी व्यक्त नहीं की.

इस सदी के सियासी घटनाक्रम के अहम किरदार वे रहे हैं. संजय बारू नाम के गैर पेशेवर लेखक को आप शायद भूल चले हों, जिनकी लिखी किताब द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर – द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह ने साल 2014 मे खासा हल्ला सियासी गलियारों में मचाया था. संजय 2004 से लेकर 2008 तक मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे थे. इस किताब पर अब फिल्म बनने की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं, जिसमे मनमोहन सिंह की भूमिका पंजाब का एक सुदर्शन युवक निभाएगा, वह कौन है यह अभी इस फिल्म के बाकी पहलुओं की तरह सस्पेंस ही है.

फिल्म हालांकि 2017 के आखिर तक प्रदर्शित होगी, लेकिन इसके कुछ हिस्से तय है प्रचार के लिहाज से वक्त वक्त पर दिखाये जाते रहेंगे. एक दर्जन देसी विदेशी भाषाओं मे रिलीज होने वाली यह फिल्म सिर्फ मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल को बयां करती हुई होगी. फिल्म का मूल विषय या कथन जिसे सिनाप्सिस कहना ज्यादा सटीक रहेगा वाकई दिलचस्प है की दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए जिस राजनीतिक परिश्रम और योग्यता की जरूरत होनी चाहिए, वे मनमोहन में नहीं थीं. वे एक दिन पहले तक नहीं जानते थे कि कल उन्हे प्रधानमंत्री बनाने का फैसला लिया जा रहा है या लिया जा चुका है. इस सरप्राइज़ पर वे शुरू से ही खामोश रहे, पर बीते कुछ दिनो से मौजूदा सरकार के काम काज पर कटाक्ष करते हैं, तो लगता है कि 10 जनपथ आरएसएस के खिलाफ बोल रहा है और एक उजले राजनीतिक भविष्य को लेकर आश्वस्त है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...