अकर्मण्यता, अंधविश्वास और व्यक्तिपूजा की पराकाष्ठा देखनी है तो पिछले ढाई महीनों से तमिलनाडु में देखी जा सकती है, जहां जे. जयललिता के बीमार होने से मृत्यु तक घरों, सड़कों, स्कूल, कौलेजों, बाजारों, मंदिरों और विधानसभा तक में हवन, पूजापाठ, मंत्रोच्चारण चल रहे थे. चैन्नई के अपोलो अस्पताल के बाहर 24 घंटे हजारों लोग जयललिता के स्वस्थ होने की प्रार्थना करते हुए खड़े रहे. 33 लोगों ने तो अब तक आत्महत्या कर ली, कुछ के प्रयास नाकाम हो गए.

तमिलनाडु में मानो दुनिया थम सी गई. टीवी पर मृत्यु की खबर आई तो दुकानें बंद, स्कूल बंद, ट्रैफिक बंद. मौत की घोषणा से पहले आई खबर पर भीड़ तोड़फोड़, हिंसा पर उतारू दिखी. केंद्र सरकार तक माहौल बिगड़ने की आशंका से चिंतित हुई और आनन फानन में सीआरपीएफ, सीआईएसफ को अलर्ट रहने के निर्देश दे दिए गए. राज्य सरकार स्वयं जयललिता समर्थकों में भावनात्मक उबाल की वजह से कानून व्यवस्था के संकट से घबराई रही और सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई.

उधर संसद का सत्र छोड़ कर जयललिता की पार्टी अन्नाद्रमुक के  सभी 36 लोकसभा और 13 राज्यसभा सांसद चैन्नई जा पहुंचे. जयललिता के सब से करीबी पनीरसेल्वम बहते आंसुओं से जेब में जयललिता की तस्वीर रखकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे. तमाम विधायक और जनता दहाड़े मारमार कर रोती नजर आ रहे थी.

किसी की मृत्यु पर दुख होना स्वाभाविक है. होना भी चाहिए. हर व्यक्ति को समाज को ऐसे मौकों पर संवेदनशील होना ही चाहिए. यह सब रोनाधोना धर्म की इस सीख के बावजूद है कि ‘‘जो आया है वह जाएगा, मृत्यु तो शाश्वत सत्य है, शरीर मरता है आत्मा अजर अमर है. गीता में कृष्ण ने अर्जुन तक अपने रिश्तेदारों की मृत्यु पर शोक ने करने की सीख दी थी.’’ इस तरह की बातें लोग अक्सर मृत्यु को ले कर करते रहते हैं.

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