फिर एक लड़की के हाथ से किताब छीन कर उसे सिलाई मशीन थमा दी गई, ऐसे कई कमेंट्स सोशल मीडिया पर वायरल हुये थे, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रीमण्डल के फेरबदल में बेरहमी युक्त समझदारी दिखाते स्मृति ईरानी से मानव संसाधन विकास मंत्रालय छीनकर उन्हे कपड़ा मंत्रालय थमा दिया था. स्मृति की इस पदानवाति का हर किसी ने स्वागत ही किया था, तो इसकी कई वजहें थीं, जिनमे अहम यह थी कि वे खुद को इस मंत्रालय के काबिल साबित नहीं कर पाईं, उल्टे नाकाबिल हैं यह कई बार उन्होने सिद्ध किया. शायद इसी वजह से रामचन्द्र गुहा ने उन्हें दंभी और घमंडी तक कह डाला था.

दरअसल में यह राय हर उस आम आदमी की थी जो स्मृति ईरानी की अपरिपक्वता को समझ चुका था और यह कह रहा था कि महज उपकृत करने या मोहवश नरेंद्र मोदी को स्मृति को मंत्री नहीं बनाना चाहिए था, जो वामपंथी बुद्धिजीवियों के विरोध पर खिसियानी बिल्ली का सा वरताव करते दिखीं. मोदी जी को अपनी जल्दबाजी और गलती समझ आई, तो एक सधे नेता की तरह उन्होने उसे सुधार भी लिया और स्मृति ईरानी का कद घटाने का मौका चुके नहीं, लेकिन स्मृति ने अपना बचपना, अपरिपक्वता और ठसक नहीं छोड़ी.

अब सीधे सीधे तो पर कुतरे जाने पर कुछ कह नहीं सकती थीं, इसलिए सांकेतिक विरोध करते नए मंत्री को प्रभार देने का प्रोटोकाल भी उन्होंने नहीं निभाया और बौखलाहट में यह बयान और दे बैठीं कि मीडिया अभी भी उनके पीछे भागता है और कुछ तो लोग कहेंगे. लोगों के कुछ बोलने की तो वजह रही नहीं थी, लेकिन नरेंद्र मोदी की खीज, खिन्नता और गुस्सा एक बार फिर बोले, बोले क्या गरजे बरसे, जब उन्होंने स्मृति को छह केबिनेट कमेटियों में से एक में भी नहीं लिया और पार्लियामेंटरी अफेयर्स कमेटी से भी उन्हें चलता कर भद्द पीट दी.

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