जून के पहले हफ्ते में महाराष्ट्र से शुरू हुए किसान आंदोलन का जो जोरदार विस्फोट मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में हुआ, उस के पीछे के सच अब धीरेधीरे लोगों को समझ आ रहे हैं. किसानों का गुस्सा दरअसल केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर था, जिन्होंने साल 2014 के लोकसभा चुनाव की सभाओं में किसानों से बढ़चढ़ कर वादे करते उन्हें तरहतरह के सब्जबाग दिखाए थे.

ये वादे कैसे और किस तरह के थे, इस के पहले यह जान लेना जरूरी है कि मंदसौर की पुलिस फायरिंग में 6 जून को हुई 6 किसानों की मौतों से सूबे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इमेज अब हमेशा के लिए बिगड़ गई है.

आंदोलन कर रहे किसान कर्जमाफी और अपनी उपज का वाजिब दाम मिलने की मांग कर रहे थे. ये बातें दरअसल  किसानों के जेहन में डालीं तो नरेंद्र मोदी ने ही थीं, जो प्रधानमंत्री बनते ही उन्हें भूल गए. लेकिन किसान नहीं भूला कि उस ने किन वादों और बातों के एवज में नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने के लिए भाजपा को वोट दिया था.

वादे और हकीकत

2014 की अपनी चुनावी रैलियों में नरेंद्र मोदी ने दहाड़ते हुए वादा किया था कि इस बात की गारंटी वे लेते हैं कि किसानों को अपनी फसल की लागत के ऊपर 50 फीसदी कीमत मिलेगी. अगर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सत्ता में आया तो किसानों के लागत मूल्य पर 50 फीसदी का मुनाफा जोड़ कर उन्हें कीमत अदा की जाएगी.

नरेंद्र मोदी ने लागत और मुनाफे का गणित किसानों को समझाते हुए यह भी कहा था कि खाद, बीज, सिंचाई और मजदूरी मिला कर किसान को फसल पैदा करने में जो लागत आती है उस पर 50 फीसदी मुनाफा जोड़ कर समर्थन मूल्य तय किया जाएगा. किसानों को यूपीए के राज में कभी 200 तो कभी 250 रुपए और कभी 300 रुपए के हिसाब से समर्थन मूल्य मिलता है जिस से उन की पैदावार बरबाद होती है, एनडीए सरकार इस खामी को दूर करेगी.

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