देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है. अगले साल फरवरी-मार्च में मतदान हो सकता है. लगभग सभी विपक्षी दल पिछले कई महीने से तैयारियों में जुटे हैं. जो समाजवादी पार्टी 2012 से सत्तारूढ़ है, उससे भी ऐसी ही अपेक्षा थी, लेकिन हाल के घटनाक्रम से लगता है कि सपा में दूसरी ही तैयारी हो रही है.

मुलायम सिंह यादव ने कभी नहीं सोचा होगा कि जिस पार्टी को उन्होंने पच्चीस साल में खून-पसीना बहाकर इस स्थिति तक पहुंचाया है, वह परिवार के अंदरूनी तनाव, झगड़ों और वर्चस्व की जंग में टूट के कगार पर पहुंच जाएगी. वह भी विधानसभा चुनाव से कुछ ही महीने पहले.

पिछले चौबीस घंटे के भीतर घटनाएं इतनी तेजी से घटी हैं कि हर कोई हतप्रभ है. वैसे तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कभी अपने पिता और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव की हुक्म उदूली नहीं की, परन्तु पिछले छह महीने में ऐसी कई घटनाएं घटी हैं, जब उन्होंने मुलायम की इच्छा के खिलाफ जाकर फैसले करने का साहस दिखाया है. तीन महीने पहले तक भी कुनबे के बहुत से विवाद परदे के पीछे थे परन्तु जब से मुलायम ने अमर सिंह को सपा में लेने और राज्यसभा में भेजने का फैसला किया है, तब से झगड़े बढ़ गए हैं. अब बात घर से निकलकर सड़कों पर आ चुकी है.

अखिलेश यादव अपने सगे चाचा शिवपाल यादव को पसंद नहीं करते. शिवपाल अखिलेश को नापसंद करते हैं और जब 2012 में उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया गया था, तब से ही वे नाखुश हैं. चीजें दबी छिपी रहीं परन्तु परदे के पीछे ऐसी बहुत सी बातें चलती रहीं, जिनके चलते अंतत: अखिलेश यादव का धैर्य जवाब दे गया. उनके विरोध के चलते पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक बाहुबलि की पार्टी के सपा में विलय का फैसला बदलना पड़ा था, जो शिवपाल यादव की पहल पर हुआ था. बाद में एक दिन खबर आई कि मुलायम ने अखिलेश को भरोसे में लिए बिना प्रदेश अध्यक्ष पद मुख्यमंत्री से छीनकर शिवपाल यादव को सौंप दिया है. जवाब में अखिलेश ने शिवपाल से कई विभाग छीन लिए और अपनी नाराजगी का एहसास कराया.

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