1925 में जब राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ यानि आरएसएस की स्थापना हुई थी तब उसकी पोशाक पूरी तरह से खाकी की हुआ करती थी. इसको संघ के प्रथम सरसंघचालक केशव बलीराम हेडगेवार ने डिजाइन किया था. 1939 तक यह पोशाक संघ में शामिल थी. 1940 में खाकी कमीज की जगह सफेद शर्ट को ड्रेस का हिस्सा बनाया गया. 1973 में सेनाओं की तरह पहने जाने वाले लंबे बूट को हटाकर चमडे के जूते लाये गये. 2010 में चमडे की बेल्ट को पोशाक में हिस्सा दिया गया. पहले कैनवस की बेल्ट लगाई जाती थी. 2016 में हाफ पैंट को संघ ने बिदा करके भूरे रंग की फुल पैंट को पोशाक का हिस्सा बना दिया. संघ के सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी ने इसकी वजह युवा सोच को बताया.

युवाओं को संघ से जोडने के लिये संघ ने अपनी पुरानी हाफ पैंट वाली पहचान को छोड दिया. आज का युवा उदार मानसिकता का है उसकी मानसिकता को देखते हुये संघ अपने विचारों में बदलाव करता तो शायद ज्यादा तादाद में युवा संघ के साथ जुडते. संघ ने अपने प्रचार प्रसार के लिये अब शाखाओं के साथसाथ वेबसाइट भी शुरू की है. 4 साल पहले शुरू की गई इस बेवसाइट में हर माह 8 हजार युवा जुडते है. संघ की 91 फीसदी शाखायें ऐसी है जिनमें 40 साल से कम उम्र के युवा सबसे अधिक है. संघ की हाफ पैंट को लेकर बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबडी देवी ने कुछ समय पहले कटाक्ष करते कहा था यह कैसा संगठन है जिसमें बूढे लोगों को हाफ पैंट पहनना पडता है  क्या उनको सार्वजनिक जगहो पर जाने से शर्म महसूस नहीं होती. संघ में पोशाक बदलने की कवायदा लंबे समय से चल रही थी. ऐसे में राबडी देवी की बात का असर नहीं लगता पर संघ की पोशाक बदलने पर विरोधी दलो की राजनीतिक टिप्पाणी आपेक्षित थी. कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिगविजय सिंह ने कहा ‘संघ को पोशाक नहीं विचारधारा बदलनी चाहिये.’

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