दिक्कत तो यह है कि उन्हें सोनिया गांधी का दामाद या फिर प्रियंका गांधी का पति ही कहा जाता है, इससे कम या ज्यादा कोई पहचान अगर राबर्ट वाड्रा की है तो वह चर्चित और संदिग्ध डीएलएफ जमीन सौदे की है. बीते दिनों वे दिल्ली के गोल्फ क्लब में पत्रकारों से जो कुछ बोले उसे कांग्रेस का बुद्धिजीवी वर्ग पहले से बोलते खासा बवंडर मचा चुका है, मसलन कोई भी देश विरोधी होने के लिए नहीं कहता लेकिन सबका अपना सोचने का नजरिया है, हम किसी पर अपने विचार थोप नहीं सकते. थोड़ा और कुरेदने पर राबर्ट का कहना था कि वे परेशान होकर देश छोडऩे वाले नहीं हैं और जब इच्छा होगी तब राजनीति में आ जाएंगे.

यहां तक बात सधी हुई थी लेकिन जल्द ही राबर्ट वाड्रा पत्रकारों के सामने लडख़ड़ा गए और फिर जो बोले वह जरूर काबिल गौर और उनके दिल का दर्द बयां करता हुआ था बकौल राबर्ट उनके माता-पिता ने उन्हें बहुत सी सम्पत्ति दी हुई है इसलिए उन्हें आगे बढऩे या जीवन सुधारने के लिए प्रियंका की मदद की जरूरत नहीं है.

राजनीति का यह वह दौर है जिसमें प्रियंका गांधी के सक्रिय होने की संभावनाएं और जरूरतें दोनों बढ़ते जा रहे हैं. ऐसे में उनके पति राबर्ट वाड्रा की यह खीझ इस बात की पुष्टि ही करती नजर आती है.

लब्बोलुवाव यह कि कल तक जिस घराने का दामाद होने पर राबर्ट को फख्र होता था अब उस पर वे कुंठित होने लगे हैं और पैसे व जायदाद की बातें करते यह भी जता रहे हैं कि वे कोई घरजमाई नहीं है जो पत्नी या ससुराल वालों के पैसों पर गुजर बसर करता है इसीलिए अपने परिवार की गुणात्मक सम्पन्नता उन्होंने बताई. अभी तक परिवार और पत्नी प्रियंका के बारे में धैर्यपूर्वक बोलते रहने वाले राबर्ट वाड्रा की परेशानी वाकई यह है कि उनकी अपनी अलग पहचान नहीं है और यह स्वाभाविक बात भी है.

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