आज के समय में झुग्गी बस्ती मेहनतकश जनता के लिए वैसी ही है, जैसी मछली के लिए पानी. अगर झुग्गियां नहीं रहीं, तो मजदूरों को रहने के लिए कोई दूसरी सुविधा मुहैया नहीं है. इस के बावजूद सालों पुरानी झुग्गियों को उजाड़ा जाता है.
दिल्ली के शकूरबस्ती इलाके में 12 दिसंबर, 2015 को तकरीबन एक हजार झुग्गियां तोड़ दी गईं. झुग्गियों को तोड़ने की कार्यवाही को सही ठहराने के लिए रेलवे ने कई बातें कहीं, जैसे 3 बार नोटिस दिया जा चुका था, रेलवे को इस जगह की जरूरत है, झुग्गी वाले रेलों पर पत्थर फेंकते हैं, चोरी करते हैं वगैरह.
शकूरबस्ती की झुग्गियां साल 1978 से हैं. इन को रेलवे कालोनी के रूप में बसाने के बजाय उजाड़ रही है. इस झुग्गी बस्ती में बिजली, पानी व शौचालय के नाम पर कोई सुविधा नहीं है. 3 सौ रुपए प्रति महीने पर कुछ लोग प्राइवेट बिजली लिए हुए हैं, जिस से एक सीएफएल बल्ब जलता है. शौचालय के लिए खुले में जाना पड़ता है.
शकूरबस्ती में 90 फीसदी लोग बिहार से आ कर बसे हैं, जो मालगाड़ी से सीमेंट खाली करने का काम करते हैं, जिसे दिल्ली व दूसरे इलाकों में ट्रक द्वारा सप्लाई किया जाता है. साल 1978 में अजमेरी गेट से सीमेंट उतारने का काम शकूरबस्ती में शिफ्ट किया गया था. तब जो मजदूर अजमेरी गेट में थे, वे शकूरबस्ती में आ गए थे.
साल 1978 से यहां रह रहे कैलाश यादव बताते हैं कि उन्हें बंधुआ मजदूर जैसा काम करना पड़ता है. मोहम्मद अजहर आलम मधेपुरा के रहने वाले हैं, जो 1983 से शकूरबस्ती में रह कर सीमेंट उतारने का काम करते हैं. वे बताते हैं कि शुरुआती समय में मालगाड़ी समय से खाली हो, इस के लिए डिस्ट्रिब्यूटर आराम करते मजदूरों से जबरदस्ती काम कराने के लिए जीआरपी पुलिस को पैसा देते थे.