पिछले 20-25 सालों में देश में दलित राजनीति करने वाले नेताओं के हालात बदल गए हैं. दलित नेताओं के साथसाथ दलित अफसरों के हालात भी बदले हैं. इस के बाद भी आम दलितों के हालात में कोई बदलाव नहीं आया है. ज्यादातर दलित आज भी गरीबी की रेखा के नीचे जी रहे हैं. उन के पास खानेकमाने का कोई जरीया नहीं है. सेहत के मामले में भी वे सब से खराब हालात में हैं. ज्यादातर दलितों के बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं. वे बचपन से ही मेहनतमजदूरी करने लगते हैं. बड़ी तादाद में दलितों के तन पर पूरे कपड़े नहीं दिखते हैं. इस से साफ लगता है कि देश भले ही तरक्की की राह पर हो, पर सामाजिक सुधारों की दिशा में दलित अभी भी बहुत पीछे हैं.

आंकड़ों को देखें, तो यह बात साफ हो जाती है. साल 2009 से साल 2014 के बीच दलितों के प्रति अपराध के मामलों में 40 फीसदी इजाफा हुआ है. देश में तकरीबन 32 करोड़ दलित आबादी है. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए देश में कानून है, इस के बावजूद भी उन के प्रति अपराध बढ़े हैं. आमतौर पर जहां पढ़ाईलिखाई होती है, वहां अपराध भी कम ही होते हैं, सामाजिकता ज्यादा होती है. पर दलित अत्याचार के मामलों में यह बात लागू नहीं होती है. केरल साक्षरता दर में देश का सब से अव्वल राज्य है. आबादी के हिसाब से देखें, तो केरल में दलितों के प्रति अपराध की दर सब से ज्यादा है. साल 2014 में देशभर में अनुसूचित जाति के 704 लोगों की हत्या और 2233 औरतों के साथ बलात्कार के मामले सामने आए. साथ ही, इसी दौरान अनुसूचित जनजाति के 157 लोगों की हत्या और 925 औरतों के साथ बलात्कार की वारदातें दर्ज हुईं.

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