उत्तराखंड में सरकार को बचाने और बनाने की लडाई केवल 2 दलों तक ही सीमित नहीं रह गई है. राजनीतिक दलों के समर्थकों ने सोशल मीडिया से लेकर दूसरे माध्यमों के जरीये ऐसा माहौल बना दिया जिससे लग रहा है कि छोटी और बडी अदालतें भी आमने सामने खडी हो गई हैं. नैनीताल उच्च न्यायलय के फैसले को कांग्रेस के पक्ष में माना जा रहा था और उस फैसले पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भाजपा के पक्ष में प्रचारित किया जा रहा है. सच्चाई यह है कि दोनो ही अदालतों में फैसला संविधान की मंशा के अनुरूप होगा. अगर अदालत को कहीं कोई शंका लगेगी, तो पूरा मामला संविधन पीठ के हवाले भी हो सकता है.

उत्तराखंड की लडाई को केन्द्र सरकार ने अपनी नाक का सवाल बना लिया है. यह उसका अदूरदर्शी कदम है. हालात ऐसे बन गये हैं कि हरीश रावत सरकार के रहने या जाने का लाभ भाजपा को नहीं मिलने वाला. उल्टे अब उत्तराखंड की लडाई भाजपा के लिये कठिन हो जायेगी. आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भाजपा को ‘विलेन’ की तरह पेश करने में सफल हो जायेगी.

दल बदल की सरकार बनाने के मसले में भारतीय जनता पार्टी कई बार सामने आ चुकी है. उत्तर प्रदेश में दल बदल का पूरा एपीसोड लोगों को याद है. मायावती की बहुजन समाज पार्टी को तोडने की घटना और भाजपा का अपना मुख्यमंत्री बनाना सबको याद है. दल बदल के ऐपीसोड के बाद 2004 में भाजपा उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर हुई थी. उसके 12 साल बाद भी सत्ता में वापसी संभव नहीं हो पाई. दरअसल भाजपा जब सत्ता से बाहर होती है तो तमाम तरह की ‘राजनीतिक शुचिता’ की बात करती है. सत्ता में आते ही वह कांग्रेस की कार्बन कापी की तरह वह सारे काम करने लगती है जिनका वह विरोध करती थी. भाजपा की इमेज को इससे नुकसान होता है.

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