दलितों को नेतृत्व देने में असफल हो रही बसपा नेता मायावती ने राज्यसभा से अपना त्यागपत्र देकर अपने जनाधार को दोबारा हासिल करने का प्रयास किया है. मायावती को यह पता है कि भाजपा के द्वारा रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाये जाने से उसका कोई प्रभाव दलितों के बीच नहीं पड़ेगा. ऐसे में वह सहारनपुर कांड के ‘दलित-ठाकुर विवाद’ को अपना मुद्दा बनाकर राज्यसभा से अपना त्यागपत्र दे दिया है. मायावती का आरोप है कि उनको राज्यसभा में अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया गया. मायावती के त्यागपत्र के पीछे राज्यसभा में उनके दोबारा पहुंचने की चुनौती भी है. मायावती के राज्यसभा कार्यकाल का केवल 9 माह का समय ही बचा है. उत्तर प्रदेश विधानसभा और लोकसभा में बसपा के मेम्बर इतने नहीं है कि मायावती राज्यसभा की मेम्बर बन सके. ऐसे में उनको किसी दूसरे दल का सहारा लेना ही पड़ेगा.

उत्तर प्रदेश मायावती का गढ है. यहां की राजनीति के जरीय ही वह सफल हो सकती हैं. बसपा के लिये परेशानी का विषय यह है कि 4 बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहने के बाद भी मायावती उत्तर प्रदेश में संघर्ष नहीं करना चाहती. मायावती उत्तर प्रदेश की विधानसभा में उस समय ही सदस्य रहती है जब बसपा की सरकार रहती है और मायावती खुद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठती हैं. बसपा के सत्ता से हटते ही मायावती राज्यसभा के जरीये दिल्ली की राजनीति में अपने को सीमित कर लेती हैं. 9 माह के बाद उनका राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है और मायावती दोबारा बसपा के बल पर राज्यसभा सदस्य नहीं बन पायेंगी. ऐसे में राज्यसभा से त्यागपत्र देकर वह अपने वोट बैंक को संदेश देना चाहती हैं.

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