दो साल तक मथुरा के जवाहर बाग में रामवृक्ष यादव के अवैध कब्जे को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार के आला अफसर चुप्पी साधे रहे. अब मथुरा जिला प्रशासन और एलआईयू के सिर पर सारा दोष मढ कर राजधानी लखनऊ में बैठे पुलिस और प्रशासन के आला अफसर पाक साफ बच निकलना चाहते हैं. यही वह पेंच है जो बता रहा है कि सरकार के दुलारे यह आला अफसर खुद से ही चुप्पी साधे थे या इसके पीछे कोई वजह थी. अखिलेश सरकार ऐसे आरोपों के राजनीतिक जवाब तो दे सकती है, पर उन तथ्यों का क्या करेगी, जो किसी जिन्न की तरह एक एक कर बाहर आ रहे है.

समाजवादी पार्टी और रामवृक्ष यादव के संबंधों को नकारना सरल नहीं है. भारतीय जनता पार्टी सहित सभी विरोधी दल प्रदेश सरकार के आला अफसरों की चुप्पी की वजह राजनीतिक दबाव को मान रहे हैं. यही वजह है कि मथुरा प्रकरण में सीबीआई जांच की मांग उठ रही है. उत्तर प्रदेश सरकार अभी भले ही सीबीआई जांच को तैयार न हो रही हो, पर देर सबेर उसे सीबीआई या एसआईटी जैसी जांच का फैसला करना ही पडेगा. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव सामने है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की छवि को जवाहरबाग कांड से जबरदस्त धक्का लगा है.

स्वाधीन भारत सुभाष सेना ने मध्य प्रदेश के सागर जिले से 14 जनवरी 2014 को मकर संक्राति के दिने अपनी जनजागरण यात्रा शुरू की. 14 मार्च को मथुरा हाइवे स्थित बाबा जयगुरूदेव पेट्रोल पंप पर मारपीट करने के बाद 15 मार्च 2014 को रामवृक्ष यादव ने बिना अनुमति के मथुरा जवाहर बाग जिला राजकीय उद्यान पर कब्जा किया. जवाहर बाग रिजर्व पुलिस लाइन, जज कालोनी और एसपी आफिस के बीच बसी जगह थी. जवाहर बाग अवैध कब्जे को लेकर जिला प्रशासन ने प्रमुख सचिव गृह को 16 बार पत्र लिखा. 2 फरवरी 2016 को कमीशनर प्रदीप भटनागर ने मुख्य सचिव आलोक रंजन को पूरे मामले की जानकारी देते हुये अवैध कब्जा हटाने के लिये पुलिस बल की मांग की गई. 18 अप्रैल को डीएम राजेश कुमार ने प्रमुख सचिव गृह को पत्र लिखा. उद्यान विभाग ने 96 नोटिस दिये. 10 बार जिला प्रशासन और सत्याग्रहियों के साथ बातचीत हुई. इंटेलिजेंस विभाग 2014 से लगातार अपनी रिपोर्ट भेज रहा था. 200 पन्नों की महत्वपूर्ण रिपोर्ट को नजर अंदाज किया गया.

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