देश में अच्छे दिन आएं या न आएं, पर वाममोरचा के प्रमुख घटक दल मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यानी माकपा के अच्छे दिन जरूर आते दिख रहे हैं. सारदा घोटाले के जाल में फंसी है ममता बनर्जी सरकार. विधानसभा चुनाव के 1 साल के बाद ही पश्चिम बंगाल की जनता के बीच ममता बनर्जी द्वारा लाए गए ‘परिवर्तन’ पर सवाल उठने लगे थे. रहीसही कसर सारदा चिटफंड घोटाले ने पूरी कर दी. घोटाले की सीबीआई जांच से जैसेजैसे परदा उठ रहा है, राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी माकपा के लिए जमीन तैयार होती जा रही है.

बंगाल में 34 सालों तक गठबंधन की राजनीति का इतिहास रचने वाला वाम मोरचा 2011 के विधानसभा चुनाव में पराजित हो गया. वाम मोरचा का सब से बड़ा घटक माकपा इस बात का इंतजार कर रही थी कि तृणमूल कांगे्रस के प्रति बंगाल की जनता का भ्रम टूटे. एक हद तक अब यह हो भी गया है. पिछले 3 सालों में ममता के प्रति शहरी और ग्रामीण दोनों जनता का मोहभंग हुआ है.

सारदा घोटाले के रूप में लगभग 6 हजार करोड़ रुपए का चिटफंड छींका आखिर टूट ही गया. छींका टूटने की ‘धम’ से माकपा अपनी शीतनिद्रा से जाग गई. अब अगले 2 साल बंगाल में चुनाव की गहमागहमी रहने वाली है. 2015 में पहले कोलकाता नगर निगम समेत अन्य नगरपालिका चुनावों के बाद 2016 में विधानसभा चुनाव होने हैं. अब तक ‘वेट ऐंड वाच’ की नीति पर चल रही माकपा ने सारदा कांड के भरोसे एक बार फिर से चंगा होने की कवायद शुरू कर दी है. पिछले 1 महीने से माकपा लगातार सड़क के नुक्कड़ों पर जनसभाएं आयोजित कर ममता बनर्जी और उन की पार्टी तृणमूल कांगे्रस के खिलाफ हवा बना रही है. इस के लिए भाजपा से उधार लिए गए स्लोगन - भाग ममता भाग - तक का सहारा लेने से भी वह पीछे नहीं हट रही है. आजकल माकपा की रैलियों में पार्टी के नेताओं के मुंह पर भाजपा का स्लोगन चस्पां है. बड़ी बात यह है कि ये जनसभाएं सफल भी नजर आ रही हैं.

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