भाभी जी घर पर हैं, टीवी धारावाहिक कथित रूप से अश्लील और फूहड़ माना जाने के बाद भी दर्शकों की पसंद है क्योंकि इस की कामेडी में समाज का सच बौद्धिक रूप से परोसा जाता है. इस धारावाहिक के दो पात्र टीका और मलखान निट्ठले और आवारा हैं जो गुप्ता टी स्टाल पर बैठे बैठे आती जाती लड़कियां छेड़ा करते हैं. ये दोनों कविता नहीं कर पाते, इसलिए फिल्मी गाने गाया करते हैं. दोनों लड़कियों को देवी या माते नहीं कहते, बल्कि उन्हें आइटम, पटाखा या माल जैसे चलताऊ संबोधनों से नवाजते अपनी कुंठा व्यक्त करते रहते हैं, जिस पर दर्शक खूब हंसते हैं.

अब मंचीय कवि और आप नेता कुमार विश्वास ने तो टीका और मलखान के मुकाबले लड़कियों या महिलाओं को कुछ बख्शते सामान ही कहा है, जिस पर बेवजह का हंगामा कुछ नारीवादी पुरुष खड़ा कर रहे हैं. जिस समाज और धर्म में औरत की हैसियत पांव की जूती और शूद्रों सरीखी बताई गई हो, उसमें उन्हें सामान कहकर कुमार विश्वास ने जो उदारता और सज्जनता दिखाई है, उसके लिए वे आलोचना, निंदा या धिक्कार के नहीं बल्कि साधुवाद के पात्र हैं. हर कोई नहीं समझ सकता कि मंच से कविताओं के जरिये लोगों को हंसा पाना कितना मुश्किल काम है, इसके लिए औरतों को जलील करना ही पड़ता है तभी दर्शक हंसता है.

कपिल शर्मा के कामेडी शो जिसमे कुमार विश्वास ने महिलाओं को सामान कहा में उनके साथ भारी भरकम शायर राहत इंदोरी भी थे, जिनके सामने विश्वास जैसे कवि का बराबरी से स्टुडियो साझा करना ही किसी उपलब्धि या पुरस्कार से कमतर बात नहीं होती. जब आप किसी बड़े आदमी के साथ होते हैं, तो हीनता किसी न किसी रूप में प्रगट हो ही जाती है, ऐसा आप नेता के साथ हो गया, तो कोई अनहोनी नहीं हो गई न ही कोई पहाड़ टूट पड़ा. कुमार विश्वास को यह कहने का पूरा हक है कि औरत का यूं मजाक बनाना या उसे इस तरह बेइज्जत करना कोई दुर्भावना नहीं, बल्कि कविता की मांग होती है, इसके पहले भी वे दक्षिण भारतीय नर्सों के रंग पर कथित भद्दी टिप्पणी कर यह मांग पूरी कर चुके हैं.

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