अगर देश के दस शीर्ष महत्वाकांक्षी नेताओं की सूची बनाई जाए, तो ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम उसमे शामिल हो ही जाएगा. ग्वालियर राजघराने के चाकलेटी चेहरे वाले इस नेता से अब अपने गृह प्रदेश मध्य प्रदेश की दुर्दशा बर्दाश्त नहीं हो रही है, बर्दाश्त तो उनसे हालांकि यह भी नहीं हो रहा है कि कांग्रेस जाने कब तक यूं ही सत्ता से बाहर रहते बात बात पर बवाल मचाते राजनीति की मुख्य धारा में बने रहने की कोशिश करती रहेगी, पर सिंधिया को यह ज्ञान विरासत में अपने पिता माधवराव सिंधिया से मिला है कि राजनीति अनिश्चितताओं का समुच्चय है, इसलिए धैर्य रखना चाहिए.

कभी कभी यह धैर्य नाम का गुण साथ छोड़ देता है तो सिंधिया अपने दिल की भड़ास भी नहीं रोक पाते. अपने संसदीय क्षेत्र गुना–शिवपुरी अब अक्सर वे आते जाते रहते हैं और सांसद होने के नाते सरकारी विभागों की मीटिंगों मे भी शामिल होकर मतदाता को जता देते हैं कि देखो तुम्हारी चिंता और फिक्र में मुझे इन अधिकारियों के मुंह लगना पड़ता है, इसलिए अगली दफा भी संसद पहुंचा देना.

ऐसी ही एक मीटिंग में वे राज्य और उनके क्षेत्र की परेशानियों को लेकर बिफर पड़े और पूरी ईमानदारी से क्रोधित हुये, तो एक बारगी तो मौजूद अधिकारी भी सहम गए क्योंकि उनका गुस्सा दुर्वासा सरीखा था. जितनी देर वे गुस्से में बोले उतनी देर अधिकारियों ने इस राजसी क्रोध को सम्मान दिया और पिन ड्रॉप साईलेंस रखा.

बहरहाल सिंधिया के क्रोध का विसर्जन इन शब्दों के साथ हुआ कि अगर मैं मुख्य मंत्री होता तो इस्तीफा दे देता. तब कहीं जाकर मौजूद अफसरों को समझ आया कि श्रीमंत का यह गुस्सा दरअसल में खुद के सीएम न होने को लेकर था, तो उन्होने गज भर लंबी राहत की सांस ली कि बात चिंता या घबराने की नहीं, सांसद महोदय दिल में दबी एक ख़्वाहिश भर जाहिर कर रहे हैं. सिंधिया की रवानगी के बाद जाहिर है कुछ ने यह भी कहा होगा कि काश आप प्रदेश के मुख्यमंत्री होते.

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