शाही जिंदगी जीने वाली जयललिता क्या एक क्रूर और कुंठित महिला थीं? इस सवाल का सटीक जवाब यही है कि हां यह संभव है. उन की अंतिम यात्रा में उन का अपना सगा कोई नहीं था. इसलिए नहीं कि जयललिता व्यक्ति से विचार हो गई थीं, बल्कि इसलिए कि वह गैरों को अपनाती रहीं और अपनों को ठुकराती रहीं.

22 सितंबर को जब वह चेन्नै के अपोलो अस्पताल में भरती हुई थीं, उस के कुछ दिनों बाद एक युवती उन्हें देखने और मिलने अस्पताल गई थी. पुलिस वालों को उस ने बताया था कि उस का नाम दीपा है और वह जयललिता की भतीजी है. लेकिन पुलिस वालों ने उसे खदेड़ दिया था. शायद उन्हें ऐसे ही निर्देश थे या फिर मुख्यमंत्री का कोई खून का रिश्तेदार भी है, इस बात से उन्हें कोई सरोकार नहीं था.

जयकुमार जयललिता के बड़े भाई थे, जिन्होंने बचपन में बहन के साथ बराबरी के अभाव झेले थे और संघर्ष भी किया था. तब उन के संबंध बेहद मधुर थे. सन 1971 मे मां की मौत होने तक तो जयललिता के अपने भाई से ठीकठाक संबंध रहे. लेकिन इस के बाद उन के संबंधों में खटास आ गई थी.

खटास की सही वजह किसी को नहीं मालूम, पर अंदाजा यह लगाया गया कि जयललिता के सार्वजनिक जीवन की व्यस्तता इस की वजह थी. जाहिर तौर पर यह वजह दमदार नहीं है. सन 1995 में जयकुमार की मौत के बाद जयललिता ने भाभी और उन के बच्चों की कोई खबर नहीं ली.

ऐसा लगता है कि जयकुमार को या तो बहन का उच्छृंखल स्वभाव पसंद नहीं था या फिर उस की लोकप्रियता हजम नहीं हो रही थी. उन्हें जयललिता की अंतरंग होती जा रही शशिकला नागवार गुजरती थी, जिस की हैसियत तमिलनाडु के सियासी और प्रशासनिक गलियारों में दूसरे नंबर की थी. शशिकला को लोग चिन्नम्मा यानी मौसी कहते हैं. खदु शशिकला मानती भी थीं कि और कहती भी थीं कि वह जयललिता की सगी बहन नहीं हैं, पर किसी भी रिश्ते से बढ़ कर हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...