दार्जिलिंग की जनता ने जिन अरमानों से जसवंत सिंह को अपना प्रतिनिधि चुना था उन पर जसवंत ने पानी ही नहीं फेरा, बल्कि उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र से किनारा भी कर लिया है. आलम यह है कि गुस्साई जनता ने थाने में उन की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी है. जिस जनता और क्षेत्र की बदौलत जसवंत सिंह ने इतने दिनों तक सियासत की, उन को उन्होंने कैसे ठगा, पढि़ए गोपी कुमार दास की रिपोर्ट.

दार्जिलिंग संसदीय क्षेत्र के गोरखा जनमुक्ति मोरचा समर्थित भाजपा सांसद जसवंत सिंह की समूचे दार्जिलिंग पहाड़ में इन दिनों स्थिति काफी दयनीय है. वे कब अपने संसदीय क्षेत्रों के दौरे पर यहां आते हैं और कब वापस चले जाते हैं, किसी को खबर नहीं होती. ऐसा इसलिए हो रहा है कि उधेड़बुनों से भरी दार्जिलिंग पहाड़ की राजनीतिक गतिविधि के प्रति सांसद महोदय ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.

पिछले लोकसभा चुनाव से पहले दार्जिलिंग पहाड़ ही में अपना एक मकान बनवाने की घोषणा करने वाले जसवंत सिंह दार्जिलिंग पहाड़ से पता नहीं क्यों इतना रूठे कि भविष्य में इस क्षेत्र से चुनाव न लड़ने की घोषणा कर डाली.

वैसे भी दार्जिलिंग पहाड़ की किसी भी स्थिति से किसी तरह के सरोकार की इच्छा तक न रखने वाले जसवंत सिंह पर लोगों की दिलचस्पी पनपाने का काम गोजमुमो यानी गोरखा जनमुक्ति मोरचा द्वारा ही किया गया था.

गौरतलब है कि गोजमुमो यहां की 100 साल पुरानी मांग, गोरखालैंड को राज्य बनाया जाए, पर ही केंद्रित था. लेकिन अब जब खुद गोजमुमो गोरखालैंड से लुढ़क कर गोरखा टैरिटोरियल ऐडमिनिस्टे्रशन यानी जीटीए पर पहुंची है, ऐसी स्थिति में सांसद महोदय के प्रति लोगों में बचीखुची दिलचस्पी भी काफूर होनी स्वाभाविक है. अक्तूबर के महीने में स्थिति इतनी बदतर हुई कि दार्जिलिंग पहाड़ की बदलती हुई राजनीतिक गतिविधियों से नावाकिफ सांसद महोदय की कलिंपोंग थाने में गुमशुदगी की प्राथमिकी तक दर्ज कराई गई. प्राथमिकी दर्ज कराने वाले दल गोटाफो यानी गोरखा टाइगर फोर्स की शिकायत थी कि दार्जिलिंग पहाड़ की बदलती हुई राजनीतिक गतिविधियों पर सुध न लेने वाले व दार्जिलिंग पहाड़ न आने वाले हमारे सांसद जसवंत सिंह को पुलिस ढूंढ़ निकाले. गोटाफो की इस अजीबोगरीब मांग पर पुलिस के आला अफसर एकदूसरे का मुंह ताकते रह गए थे.

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