दुनियाभर के मुसलमान रमजान बहुत हर्ष व उल्लास के साथ मनाते हैं. लेकिन इस बार इसलामिक स्टेट यानी आईएस के कारण रमजान का महीना रक्तरंजित रहा. रमजान के दौरान सऊदी अरब में धार्मिक शहर मदीना में फिदायीनी हमला हुआ, इराक की राजधानी बगदाद में 2 बार आतंकी हमले हुए जिन में 300 लोग मारे गए, ढाका  में 20 लोगों की गला रेत कर हत्या कर दी गई, इस्तांबुल में विमानतल पर फिदायीनी हमले में 32 लोग मारे गए. यानी आईएस ने रमजान के महीने के दौरान खून बहा कर उसे नापाक कर दिया. यदि ढाका की घटना को छोड़ दें, तो बाकी सभी घटनाओं में मारे गए मुसलमान ही थे. फिर इसलामी कहलाने वाले आईएस ने मुसलमानों की हत्याएं कर के क्या हासिल किया? अब आ रही खबरें बताती हैं कि आईएस ने जानबूझ कर ऐसा किया.

रमजान की शुरुआत में आईएस के प्रवक्ता ने कह दिया था कि यह महीना काफिरों के लिए संकट ले कर आएगा. लेकिन आईएस की नजर में काफिर केवल गैरमुसलिम ही नहीं हैं. वरन वे सभी मुसलमान भी काफिर या मुशरिक हैं जो इसलाम में संशोधन कर रहे हैं. मुशरिक उसे कहते हैं जो शिर्क करता है और शिर्क का अर्थ बहुदेववाद है. इसलाम के अनुसार, अल्लाह के अलावा किसी अन्य व्यक्ति या वस्तु की उपासना करना, उस की स्तुति करना या उस का वंदन करना शिर्क है. इस तरह आईएस ने मुसलमान की परिभाषा ही बदल दी है. इराक और सीरिया के एक हिस्से पर बने इसलामिक राज्य ने हाल ही में 2 साल पूरे कर लिए. इस दौरान आईएस ने नृशंसता का प्रदर्शन किया. रूस, पश्चिमी सैनिक गठबंधन और अरब देशों के आसमान से बरसती हजारों मिसाइलों के कारण उस की अपनी जमीन पर उस की हालत खस्ता है. अब वह इराक और सीरिया की अपनी जमीन का कुछ हिस्सा खो भी चुका है. इस का बदला लेने के लिए वह दुनियाभर में आतंकवादी वारदातों को अंजाम दे कर कई देशों को दहला रहा है.

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