देश के बहुत सारे राजनीतिक पंडित और अर्थशास्त्री चुनाव होने से पहले ही नरेंद्र मोदी के बारे में कह रहे थे कि वे भारत के लिए मार्गेट थैचर या तेंग सियाओ पिंग साबित हो सकते हैं. इन दोनों नेताओं की खासीयत यह थी कि इन्होंने अपने देशों को समाजवादी मकड़जाल से मुक्त किया और पूंजीवादी या बाजारोन्मुख विकास के रास्ते पर आगे बढ़ा कर संपन्न बनाया. गुजरात मौडल की सफलता के बाद नरेंद्र मोदी से भी यह उम्मीद की जाने लगी कि वे आर्थिक सुधारों के रास्ते पर चल कर भारत को तरक्की के रास्ते पर ले जाएंगे. उन के नेतृत्व में भारत भी एक महाशक्ति बन कर उभरेगा.

कहना न होगा कि नरेंद्र मोदी ने स्वयं लोगों के विकास को ले कर उम्मीदों को जगाया और बहुत विश्वासपूर्वक कहा कि यदि भारतीय जनता पार्टी जीती तो देश के अच्छे दिन आएंगे. अच्छे दिन लाने की बात मतदाताओं को इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने अच्छे दिन लाने के लिए भाजपा और मोदी को बहुमत दिया ताकि भाजपा और मोदी के पास अच्छे दिन न लाने का कोई बहाना न रह जाए.

लेकिन देश में अच्छे दिन तब आएंगे जब ऐसा विकास हो जिस से समृद्धि पैदा हो, लोगों को उत्पादक रोजगार मिले. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए ही नरेंद्र मोदी ने ‘मेक इन इंडिया’ की योजना शुरू की है. इस का मकसद भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना है. अपने चुनावी भाषणों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले कुछ वर्षों में 10 करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा किया था. तब उन्होंने कहा था--इस के लिए जरूरी है कि सामान भारत में बने, भले ही हम उसे बेचें कहीं भी. उन्होंने इस बात पर अचरज जताया कि बहुत सी सामान्य चीजें भी हम अपने देश में नहीं बना पाते. यह कह कर मोदी ने देश की आर्थिक समस्या पर उंगली रख दी. देश में अच्छे दिन तब तक आ ही नहीं सकते जब तक कि इस का मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर तेजी से नहीं फलेफूलेगा क्योंकि यही सैक्टर है जो लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार दे सकता है.

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