मतदाता के फैसले का हम सम्मान करते हैं, हार की समीक्षा की जायेगी, ये ऐसे शब्द हैं जिन्हे कांग्रेस हर हार के बाद दोहराती है. इसके बाद दूसरी पंक्ति के नेता अपने हिस्से के संवाद दोहराते हैं कि दरअसल कांग्रेस मे बड़ी सर्जरी की ज़रूरत तो है, पर शीर्ष में नहीं बल्कि निचले स्तर पर है. बचे खुचे आधा दर्जन दिग्गजों मे से एक कमलनाथ ने भी यही कहते एक तरह से आलाकमान यानि सोनिया-राहुल गांधी को क्लीन चिट दे दी है. इससे समझने वाले समझ गये हैं कि पांच राज्यों की दुर्दशा पर अब पूर्ण विराम लग गया है. वैसे भी चुनावी झांकी उठ गई है और मूर्ति विसर्जन भी हो चुका है. सियासी कुरुक्षेत्र मे अब धूल उड़ रही है जीतने वाले राजतिलक की तैयारियों मे जुट गये हैं और हारने वाले विश्लेषण के नाम पर मातम मना रहे रहे हैं.

कमलनाथ के कहने का मतलब बेहद साफ है कि चिंता की कोई बात नहीं, कुछ दिनों बाद चमत्कार होगा और कांग्रेस पहले की तरह राज़ करेगी. जो हो रहा है वह सब मिथ्या और भ्रम है, इसलिये जो कांग्रेसी बचे हैं उन्हे निराश होने की ज़रूरत नहीं. ये आकाशवाणियां ज़मीन से कांग्रेस करने की आदी हो चुकी है, जिसका सार इतना भर होता है कि सोनिया राहुल के वाबत कोई मुंह न खोले, क्योंकि उससे कोई फायदा नहीं होने वाला. वे तो शाश्वत हैं, फ़िर सर्जरी कहां होनी है और कौन करेगा, यह न तो अब कोई पूछने वाला और न कोई बताने वाला.

यही वह मानसिकता है जिसके चलते प्रतिबद्ध कांग्रेसी घर बैठ गये हैं और ममता-जयललिता जैसी मेहनती नेत्रीया कांग्रेस पर भारी पड़ने लगी हैं. जो कमल नाथ ने कहा वही अमित शाह ने दूसरे शब्दों मे कहा कि देश कांग्रेस मुक्त हो रहा है, भगवा युक्त होने का दावा तो हमने कभी नहीं किया, यानि उंगली नरेंद्र मोदी के उतरते जादू पर न उठाई जाये. असम जीतकर भाजपा को बहाने बनाने का हक है पर भरोसा खो चुकी कांग्रेस तो नासूर पर मरहम पट्टी की बात कर जख्म को ढक भर रही है, जो साल भर बाद फ़िर रिसेगा. तब कमलनाथ या दिग्विजय सरीखे नेता फ़िर कहेंगे, सर्जरी की ज़रूरत तो है पर निचले स्तर पर.

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