क्या गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन वाकई पद मुक्त कर दी जाएंगी या यह अफवाह या फिर एक राजनैतिक अंदाजा भर है. इस पर साफ साफ कोई नहीं बोल पा रहा, जिसकी वजनदार वजहें भी हैं जिनमे से पहली यह है कि भाजपा को हांकने वाले आरएसएस के एक आंतरिक सर्वे की यह रिपोर्ट आम हो चुकी है कि आनंदीबेन के 2 साल के नेतृत्व में गुजरात में भाजपा उम्मीद से कहीं ज्यादा कमजोर हुई है.

हार्दिक पटेल का कामयाब आरक्षण आंदोलन और निकाय चुनावों में भाजपा का लचर प्रदर्शन इसकी पुष्टि भी करते हैं. 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद आनंदी को हटाये जाने की चरचाएं फिर ज़ोर पकड़ रही हैं और इस पर भाजपा आलाकमान की चुप्पी मामले को और रहस्यमय बना रही है. उधर आनंदीबेन की बड़ी परेशानी आरएसएस का सर्वे कम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बेरुखी  ज्यादा है. कहा यह भी जा रहा है कि खुद  मोदी भी उनके काम काज से संतुष्ट नहीं हैं और दूसरे कई नेताओं की तरह वे भी इस बात से सहमत हैं कि गुजरात में अगले साल होने जा रहे विधान सभा चुनावों के लिहाज से मौजूदा हालात पार्टी के माफिक नहीं हैं.

आनंदीबेन को जिन उम्मीदों से मुख्यमंत्री बनाया गया था उन पर वे खरी नहीं उतरी हैं. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और आनंदीबेन के रिश्तों की खटास भी जग जाहिर है, लेकिन मोदी के लिहाज के चलते अमित शाह ने कभी आनंदी के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की और चुप रहते गेंद मोदी के पाले में डाल रखी है कि या तो वे गुजरात चुन लें या फिर आनंदी. नरेंद्र मोदी का धर्मसंकट यह है कि आनंदीबेन को हटाया किस बहाने से जाए, क्योंकि वे थीं तो उनकी ही पसंद. तय है मोदी नहीं चाहते कि आनंदी को कमजोर नेतृत्व या पार्टी की घटती साख के आरोप मढ़ते चलता किया जाए.

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