16 फरवरी, 2016 को कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने संसदीय इलाके गुना शिवपुरी के गांवों में थे. इस से ज्यादा हैरत की बात यह थी कि वे पहली दफा 8 किलोमीटर पैदल चले और एक गांव पाली में एक गरीब आदिवासी औरत भूरीबाई की झोंपड़ी में घुस कर उन्होंने रोटी खाई.

ग्वालियर चंबल इलाके में अभी भी ज्योतिरादित्य सिंधिया को ‘महाराज’ कह कर बुलाया जाता है. वे जहां भी जाते हैं, वहां के गरीब लोग उन के पैरों में सिर झुका कर अपनेआप को धन्य समझते हैं. पिता माधवराव सिंधिया की साल 2002 में एक हवाई हादसे में हुई मौत के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया को सियासत में पैर जमाने में कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ी थी. पिता की बनाई टीम उन के साथ थी और सोनिया गांधी व राहुल गांधी से उन के संबंध बेहद नजदीकी थे.

मध्य प्रदेश में वजूद की लड़ाई लड़ रही कांगे्रस को करारा झटका हालिया मैहर विधानसभा उपचुनाव में लगा था, जब भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार नारायण त्रिपाठी ने कांगे्रस के उम्मीदवार मनीष पटेल को तकरीबन 28 हजार वोटों से शिकस्त दी थी. इस चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी एड़ीचोटी का जोर लगाया था, लेकिन जब नतीजा सामने आया, तो समझ यह भी आया कि मैहर मध्य भारत में नहीं, बल्कि विंध्य इलाके में है, जहां के वोटरों ने उन पर कोई खास तवज्जुह नहीं दी.

मैहर का चुनाव कई माने में अहम था, जिस की बाबत सियासी जानकारों ने ऐलान यह कर दिया था कि अगर भाजपा यह चुनाव हारी, तो साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांगे्रस की सत्ता में वापसी तय है. कांगे्रस को उम्मीद थी कि दलित, पिछड़े, आदिवासी और मुसलिम वोटों के अलावा कुछ सवर्ण वोट भी उसे मिलेंगे और वह यह सीट निकाल ले जाएगी, पर हुआ उलटा.

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