10वीं और 12वीं बोर्ड जैसी अहम परीक्षाएं आयोजित कराने वाले मध्य प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा मण्डल ने 5 मार्च को बारहवीं के हिन्दी के पर्चे मे छात्रों से एक विषय पर निबंध लिखने को कहा, विषय बड़ा ही दिलचस्प और सामयिक था, जातिगत आरक्षण देश के लिए घातक. 8 मार्च आते आते इस नाजुक मसले पर राजनीति इतनी गरमा गई कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को इस मामले पर जांच के आदेश देने पड़े.

विधानसभा मे विपक्ष ने जमकर हंगामा मचाते हुये आरोप यह लगाया कि सरकार आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ा रही है. कार्यवाहक नेता प्रतिपक्ष बाला बच्चन इस मुद्दे पर बेहद आक्रामक मूड मे दिखे जो इस विषय पर बहस की इजाजत चाहते थे, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष डॉक्टर सीताशरण शर्मा ने अनुमति नहीं दी. राजनीतिक स्तर पर अब कुछ भी हो, लेकिन यह साफ तौर पर उजागर हो गया है कि शिक्षण संस्थाओं मे सवर्ण मानसिकता बाले कर्मचारियों का दबदबा है जो आरक्षण विरोधी हैं और भगवा खेमे के पक्ष में माहौल बनाने का कोई मौका नहीं चूकते, इन्हे बेहतर एहसास इस बात का है कि दरअसल में सरकार शिवराज सिंह नहीं संघ चला रहा है.

आरक्षित वर्ग के छात्रों की राय और मानसिकता टटोलने के लिए बोर्ड का इम्तहान एक बेहतर जरिया था, जिसके जरिये इस वर्ग के छात्रों को जलील भी किया गया. 12वीं के छात्रों का बौद्धिक स्तर इतना इतना विश्लेषक नहीं होता कि वे यह बता सकें कि जातिगत आरक्षण घातक नहीं, बल्कि 2 हजार सालों से ऊंची जाति बाले रसूखदारों की गालियां और जूतियां खा रहे नीची जाति वालों का संवैधानिक अधिकार और शोषण का मुआवजा है, जिसके चलते ही जेएनयू में कन्हैया जैसे छात्र पैदा होते हैं, क्योंकि वे बचपन से ही देख और भुगत रहे हैं कि कैसे उनके पूर्वजों को सवर्णों के घर के सामने से गुजरते वक्त पैरों से जूते निकालकर सर पर रखना पड़ते थे. यह अमानवीय और घृणित प्रथा आज भी गांव देहातों मे बरकरार है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...