वैसे तो भाजपा असम में मिली जीत से बहुत उत्साहित है. असम में जिन नेताओं की अगुवाई में चुनाव लडे गये, उत्तर प्रदेश में उनके नाम के होर्डिंग लग गये. भाजपा कार्यकर्ता न केवल उनको सम्मानित करने की तैयारी में हैं, बल्कि उनकी मांग है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी असम फामूर्ला लागू किया जाये. असम में भाजपा ने मुख्यमंत्री पद के अपने उम्मीदवार को सामने रखकर चुनाव लडा था. राजनीतिक जानकार मानते है कि इसका ही भाजपा को लाभ मिला और उसकी जीत हई.

राजनीति में जो सफल हो जाता है वही हिट फामूर्ला माना जाता है. मुख्यमंत्री के चेहरे के साथ भाजपा ने दिल्ली में चुनाव लडा था. इसके बाद भी दिल्ली में भाजपा की बुरी तरह से हार हुई. तब मुख्यमंत्री के चेहरे के फार्मूला को सारा दोष दे दिया गया था. इसके बाद भाजपा ने बिहार में बिना किसी चेहरे को आगे किये विधानसभा का चुनाव लडा पर जीत हासिल नहीं हुई. अब असम में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद एक बार फिर से मुख्यमंत्री के चेहरे को आगे करके चुनाव लडने की तरफदारी की जा रही है.

भाजपा के कुछ रणनीतिकार मानते है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी को आगे करके विधानसभा चुनाव लडना चाहिये. भाजपा में संगठन स्तर पर इस बारे में कई बार गंभीरता से विचार हुआ. दर्जन भर से ज्यादा नेताओं ने अपने अपने नाम की लाबिंग शुरू करा दी. जिसकी वजह से नेताओं में आपस में टकराव शुरू हो गया. उत्तर प्रदेश की जातीय अंकगणित में कोई एक जाति ऐसी नहीं है जिसको साधने से चुनाव जीता जा सके. ऐसे में किसी एक नेता पर भरोसा करना भाजपा को सही नहीं लग रहा था. भाजपा में उत्तर प्रदेश में नेताओं के अलग अलग गुट बने है. जिसके चलते ही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव करने में तमाम परेशानियां आई थी. उत्तर प्रदेश में भाजपा दलित-पिछडो के साथ ही साथ अगडों को भी पार्टी के साथ जोड के रखना चाहती है.

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