हरियाणा में अचानक भड़के जाट आरक्षण आंदोलन ने प्रदेश सरकार के साथसाथ केंद्र सरकार के सुशासन के दावे की पोल भी खोल दी है. देखते ही देखते ‘हरित प्रदेश’ एक ‘उजाड़ प्रदेश’ में तबदील हो गया है. रही सही कसर सत्तारूढ़ दल के कुछ नेताओं के गैरजरूरी बयानों ने पूरी कर दी, जिस से यह आंदोलन तबाही का सबब बन गया. लगता है कि शासन और प्रशासन यह नहीं समझ पाया कि यह जाट  आंदोलन किस दिशा की ओर जा रहा है, तभी तो हरियाणा के कृषि मंत्री ओपी धनखड़ और दूसरे भाजपाई नेताओं के घरों पर तोड़फोड़ की गई. इस का नतीजा यह हुआ कि हरियाणा के कई शहरों में सेना उतारने और कर्फ्यू लगाने की नौबत आ गई. सरकार का यह कैसा सुशासन है कि शांति बनाए रखने के लिए सेना बुलानी पड़ी?

इस आंदोलन से विपक्षी दलों को मुंह खोलने का मौका मिल गया. कांग्रेस में तो जैसे नई जान आ गई. उस के नेता हर जगह सक्रिय दिखाई दिए और हरियाणा सरकार के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पर जम कर निशाना साधा.

कहने को तो जाट आरक्षण का मुद्दा सिर्फ हरियाणा से जुड़ा है, लेकिन इस का असर केंद्र सरकार पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है. इस से पहले भी हैदराबाद यूनिवर्सिटी में एक दलित छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी और दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में हुए बवाल के बाद केंद्र सरकार को जिस तरह से मसले को सुलझाना चाहिए था, उस में वह नाकाम रही. कोलकाता के जादवपुर कालेज समेत पूरे देश में जिस तरह से केंद्र सरकार के खिलाफ मुखर विरोध सुलग रहा है, वह खतरनाक है. इस से कांग्रेस को अपनी हैसियत दिखाने का मौका मिल गया है. नरेंद्र मोदी के विकास रथ से कुचली गई कांग्रेस की उम्मीदें 2 साल में ही फिर से कुलांचें मारने लगी हैं. मजेदार बात यह है कि कांग्रेस को यह मौका अपनी मेहनत या संगठन की ताकत से नहीं, बल्कि केंद्र में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी की नाकामियों से मिल रहा है. नरेंद्र मोदी के आर्थिक विकास रथ के लिए जिस सीधेसपाट रास्ते की जरूरत थी, उस पर भाजपा के कट्टरवादी गड्ढे खोद रहे हैं. भाजपा लोकसभा में जो भी सुधार बिल ला रही है, कांग्रेस ने उस का विरोध करने का काम शुरू किया है.

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