दिल्ली राज्य सरकार का गठन एक मखौल बनता जा रहा है. 29 विधायकों के साथ भारतीय जनता पार्टी जनवरी में आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल द्वारा खाली की गई कुरसी पर कब्जा जमाना चाहती है पर लाख कोशिशों के बावजूद वह सरकार बनाने के लिए आवश्यक 5 अतिरिक्त विधायकों का समर्थन नहीं जुटा पा रही. अरविंद केजरीवाल ने जनवरी में त्यागपत्र इसीलिए दिया था कि उन को कांगे्रस के समर्थन पर निर्भर रहना पड़ रहा था और उन्हें अप्रैलमई के लोकसभा चुनावों से बहुत उम्मीदें थीं.

अब अरविंद केजरीवाल को डर है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद उन को दिल्ली की जनता दोबारा चुनेगी या नहीं पर वे यह भी नहीं चाहते कि भारतीय जनता पार्टी बिना चुनावों की अग्नि परीक्षा दिए सत्ता हासिल कर ले. इसलिए वे उपराज्यपाल नजीब जंग के राष्ट्रपति को लिखे उस पत्र का विरोध कर रहे हैं जिस में सरकार के संभावित गठन के लिए भारतीय जनता पार्टी को सब से ज्यादा विधायकों वाली पार्टी होने के नाते बुलाए जा सकने की बात है. दिल्ली में राज्य सरकार बननी चाहिए और यदि बिना चुनावों के बन जाए तो अच्छा है क्योंकि फिलहाल भारतीय जनता पार्टी का पलड़ा भारी है. यह ठीक है कि जनता केंद्र सरकार के फैसलों से कोई बागबाग नहीं हो रही पर इतनी नाराज भी नहीं कि नईनवेली बहू को त्यागने का समय आ गया हो.

केंद्र की तरह दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने से एक वैधानिक जरूरत ही पूरी होगी. जनता के दुख दूर होंगे, इस की कोई गारंटी नहीं. दिल्ली का काम असल में नगर निकायों से चलता है और दिल्ली के चारों नगर निकायों में भाजपा की सत्ता है और दिल्ली गंदी, बदबूदार, बदहाल, टै्रफिक की मारी, अवैध निर्माणों की शिकार, भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों के चंगुल में है. जब भाजपा के नगर निगम स्वर्ग उतार कर नहीं ला पाए तो दिल्ली में उस की संभावित सरकार कौन सा गड़ा खजाना ला देगी?

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