‘मैं हूं अमित शाह. दीदी सुनिए, आप की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए मैं यहां आया हूं.’ 2014 के नवंबर के महीने में पश्चिम बंगाल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की यह हुंकार अब शायद कहीं दब सी गई लगती है. लोकसभा चुनाव में भाजपा की सफलता में जिस अमित शाह ने ममता बनर्जी पर सारदा चिटफंड घोटाले के आरोपियों को बचाने का आरोप लगाते हुए अगले विधानसभा चुनाव में ‘भ्रष्ट’ तृणमूल कांगे्रस को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया था, अब वही अमित शाह 2016 के विधानसभा चुनाव को छोड़ कर 2019 के लोकसभा चुनाव को जीतने की बात करने लगे हैं. पिछले 2 महीनों में बंगाल में अमित शाह की जितनी भी जनसभाएं हुईं, उन से अंदाजा लगने लगा कि भाजपा धीरेधीरे आगामी विधानसभा चुनाव से अपने पैर खींचने लगी है.

2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य में 18 प्रतिशत मत प्राप्त करने के साथ भाजपा ने ममता बनर्जी के विधानसभा चुनाव क्षेत्र में भी बढ़त हासिल की थी, इस के बाद प्रदेश भाजपा का गुमान में मदमस्त होना लाजिम ही था. होता भी क्यों न, यही 18 प्रतिशत मत राज्य में भाजपा का अब तक का सब से बड़ा प्रदर्शन जो था. इस से पहले राज्य में भाजपा की हैसियत कभी ऐसी नहीं बन पाई कि इसे गंभीरता से लिया जाए. हां, कोलकाता नगरनिगम में गिनती की कुछ सीटें जरूर मिलती रही हैं. लेकिन 2014 में लोकसभा चुनाव में जब नरेंद्र मोदी की लहर पूरे देश में चलने का दावा किया जा रहा था, तब 18 अप्रैल, 2015 को हुए कोलकाता नगरनिगम चुनाव में भाजपा को महज 7 सीटें ही मिल पाईं. यही भाजपा का सब से अच्छा प्रदर्शन रहा है. तथाकथित मोदी लहर में पिछले कोलकाता नगरनिगम चुनाव में 3 सीटों से आगे जा कर भाजपा महज 7 सीटें निकाल पाई. यानी खास कोलकाता में, वह भी यहां के नगर निगम चुनाव में, भाजपा अतिरिक्त 4 सीटों तक ही पहुंच सकी. जाहिर है मोदी की भारी लहर में भी राज्य में भाजपा कोई खास करिश्मा नहीं दिखा सकी.

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