भारत माता की जय बोलने को लेकर राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं सहित अन्य संगठनों ने जिस तरह से देश में एक महौल बनाया उसका विरोध भी शुरू हो गया. औल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमिन यानि एआईएमआईएम के प्रमुख सांसद असुदुद्दीन ओवैसी ने कहा था कि कोई मेरी गरदन पर छुरा रख दे, तो भी मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगा. ओवैसी ने संविधान का हवाला देते हुए तर्क दिया कि संविधान में भी कहीं भारत माता की जय बोलने को नहीं कहा गया है. ओवैसी ने भारत माता की जय की जगह पर जय हिंद के नारे लगाने का समर्थन किया. पूरे देश में एक तरह की बहस छिड गई. जिसमें भारत माता की जय बोलने और न बोलने को लेकर विवाद हो गया. लखनऊ में किसान संघ के के नवनिर्मित भवन का लोकापर्ण करने आये राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने साफ कहा ‘भारत माता की जय को किसी पर थोपने की जरूरत नहीं है. हमें अपने आदर्शो से ऐसे भारत का निर्माण करना है कि लोग खुद भारत माता की जय बोलने लगे’. इसे संघ प्रमुख के यू-टर्न के रूप में देखा जा रहा है.

दरअसल संघ प्रमुख मोहन भागवत के यू-टर्न की अपनी कुछ खास वजहें हैं. सबसे बडी वजह जम्मू कश्मीर में पीडीपी और भाजपा की सरकार का बनना है. जम्मू कश्मीर में भाजपा-पीडीपी गठबंधन की सरकार पहले बनी थी. उस समय के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद करीब 2 माह तक यह गठबंधन अधर में लटका रहा. पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर एकमत नहीं थी. 2 माह बाद यह गठबंधन वापस पटरी पर आ रहा था, इसी बीच भारत माता की जय के नारे का विवाद उठ खडा हुआ. संघ और भाजपा अब इस तरह की विवादित नारे को किनारे रखकर आगे बढना चाहते हैं. केरल, पश्चिम बंगाल, असम और तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में ऐसे नारे नुकसान पहुंचा सकते हैं. ऐसे में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भारत माता की जय के नारे पर सही समय पर यूटर्न लेना ही सही समझा.

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