क्या आप के साथ भी कभी ऐसा हुआ है कि आप कौन्फ्रेंस रूम में खड़े हो कर प्रेजेंटेशन दे रहे हैं. सामने बौस ,सीनियर्स और कोवर्कर्स बैठे हुए हैं. मीटिंग काफी महत्वपूर्ण है और आप के दिल की धड़कनें बढ़ी हुई है. हथेलियां पसीने  से भीग रही है.

आप हाथों को किसी तरह पोंछने का प्रयास कर रहे हैं और घबड़ाहट  में आप के हाथों से नोट्स गिरतेगिरते बचता है. ऐसी परिस्थिति में न सिर्फ आप का आत्मविश्वास घटता है बल्कि देखने वाले पर आप के व्यक्तित्व को ले कर नकारात्मक प्रभाव भी  पड़ता है. यह एक सामान्य प्रक्रिया है जो अक्सर हमारे साथ होता है. यह स्ट्रेसफुल या तनावपूर्ण परिस्थितियों  की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है.

फर्स्ट डेट, इंटेंस सोशल इंगेजमेंट या किसी डेडलाइन को मिस कर देने के भय के दौरान भी कुछ इसीतरह की स्थिति महसूस होती है. कई दफा तीखे मसालेदार भोजन ,जंक फूडस , स्मोकिंग या कैफीन के अधिक प्रयोग से भी ऐसा हो सकता है.

पसीना शरीर के कुछ खास हिस्सों में अधिक आता है. जैसे हमारी हथेलियां, माथा, पैर के तलवे, आर्मपिट आदि क्यों कि इन हिस्सों में स्वेटग्लैंड्स अधिक मात्रा में होते हैं. पसीना निकलता है ताकि हमारे शरीर का तापमान घट जाए. यही वजह है कि जब आप जोगिंग पर जाते हैं ,कुश्ती लड़ते हैं, मेहनत का काम करते हैं या फिर गर्मी अधिक हो रही होती है तो आप को पसीना आने लगता है. तनावपूर्ण परिस्थिति में भी हमारे शरीर का तापमान बढ़ जाता है और पसीना आता है.

क्यों होती है नर्वस स्वेटिंग?

इस सन्दर्भ में सरोज सुपर स्पेशलिटी हौस्पिटल के डा. संदीप गोविल  कहते हैं कि जब आप नर्वस होते हैं तो आप के स्ट्रेस हार्मोन एक्टिवेट हो जाते हैं. इस से आप के शरीर का तापमान और हृदय की धड़कनें बढ़ जाती हैं. मस्तिष्क में मौजूद हाइपोथेलेमस ,जो पसीने को नियंत्रित करता है, स्वेट ग्लैंड्स को संदेश भेजता है कि शरीर को ठंडा करने के लिए थोड़ा पसीना निकालना जरूरी है. सिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम इमोशनल  सिग्नल्स को पसीने में बदल देता है. आप इस प्रक्रिया को नियंत्रित नहीं कर सकते.

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