‘मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उन के अफसर, ऐसे दलित अफसर चाहते हैं, जो उन के पैरों में बैठे रहें. मुझे मजबूर किया जाता रहा है कि मैं हैदराबाद यूनिवर्सिटी के दलित छात्र रोहित वेमुला की तरह खुदकुशी कर लूं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह दलितों के लिए अच्छी सोच रखते हैं, जबकि उन्हीं की पार्टी के मुख्यमंत्री दलितों के साथ नाइंसाफी करते हैं.’ ऐसे ढेरों इलजाम मध्य प्रदेश सरकार और ऊंची जाति वाले अफसरों व मंत्रियों पर लगाने वाले आईएएस रमेश थेटे एक बार फिर सुर्खियों में हैं.

पंचायत और ग्रामीण विकास महकमे में सचिव पद पर तैनात इस अफसर के दिल का दर्द उस वक्त और फूट पड़ा, जब उन्हें उन्हीं के महकमे के एसीएस राधेश्याम जुलानिया ने जाति की बिना पर परेशान कर डाला. रमेश थेटे ने 11 जुलाई, 2016 को बाकायदा एक प्रैस कौंफ्रैंस बुला कर कहा कि उन्हें जातिगत वजहों के चलते सचिव के अधिकार नहीं दिए गए हैं और राधेश्याम जुलानिया ने उन्हें स्वीपर बना दिया है. इस अफसर की ज्यादतियों के विरोध में उन्होंने राज्य सरकार को धौंस भी दी थी कि अगर राधेश्याम जुलानिया को नहीं हटाया गया और उन के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की गई, तो वे खुदकुशी करने पर मजबूर हो जाएंगे. इस के जिम्मेदार लोगों के नाम उन्होंने एक लिफाफे में बंद कर दिए हैं.

सरकार के लिए गले की हड्डी बनते जा रहे रमेश थेटे की धौंस का, जैसे की उम्मीद थी, कोई असर नहीं हुआ. उलटे उन्हें ही सरकार ने एक और नोटिस थमा दिया कि आईएएस रैस्ट हाउस के बाहर प्रैस कौंफ्रैंस करना सरकारी नियमों की अनदेखी है, इस पर क्यों न आप के खिलाफ कार्यवाही की जाए. रमेश थेटे ने इस नोटिस का जवाब देने की जरूरत नहीं समझी और आरपार की लड़ाई का मन बना लिया, क्योंकि विवादों का उन के साथ गहरा नाता है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...