अभिनेता तुषार कपूर अपनी पहली फिल्म के आगाज से ही समीक्षकों की कड़ी आलोचनाओं का शिकार होते रहे हैं. इन की आलोचना कई माने में सही भी मानी जा सकती है क्योंकि अब तक 15 साल के कैरियर में शायद ही कोई फिल्म होगी जो सीधे तौर पर तुषार कपूर की वजह से कामयाब हुई है. ज्यादातर सफल फिल्मों में तुषार या तो साइडरोल में थे या कौमेडियंस की फौज में खड़े एक औसत किरदार करते दिखे. कैरियर में एक वक्त ऐसा आया कि उन्हें फिल्में न के बराबर मिलने लगीं. तब उन के डूबते कैरियर को सहारा मिला अपने घर से.  जी हां, जब एकता कपूर ने अपने प्रोडक्शन की ‘शूटआउट एट वडाला’, ‘शोर-इन द सिटी’, ‘क्या कूल हैं हम’ और ‘डर्टी पिक्चर’ जैसी फिल्मों में अहम सहायक भूमिकाएं देनी शुरू कीं. इन में ज्यादातर फिल्में सफल भले रही हों लेकिन इन की सफलता का क्रैडिट पाने वाले तुषार कपूर आखिरी कलाकार रहे.

अपने जमाने के मशहूर व लोकप्रिय स्टार जीतेंद्र के पुत्र तुषार कपूर ने साल 2001 में रोमांटिक फिल्म ‘मुझे कुछ कहना है’ के साथ अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की थी. उस के बाद कौमेडी फिल्मों के पर्याय से बन गए. 2010 में उन का कैरियर काफी ऊंचाइयों पर था. पर फिर अचानक उन का कैरियर ढलान पर चला गया. यदि हम तुषार कपूर के कैरियर का आंकलन करें तो वे मल्टीस्टारर फिल्मों में ही चल रहे हैं. जबकि वे अपने कैरियर को संवारने का भरसक प्रयास करते रहते हैं. हालिया प्रदर्शित एडल्ट कौमेडी फिल्मों ‘क्या कूल हैं हम 3’ और ‘मस्तीजादे’ में भी उन्हें दर्शकों ने सिरे से खारिज कर दिया. उलटे, अश्लील कौमेडी फिल्मों का हिस्सा बनने पर उन की आलोचना ही हुई है. इस के बावजदू, तुषार कपूर का दावा है कि वे बहुत जल्द नई ऊंचाइयों को छूने वाले हैं.

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