महाराष्ट्र में जलगांव के एक पिछड़े गांव मांदोड़े से फिल्मों में कुछ करने की तमन्ना लेकर मुंबई पहुंचे शिवाजी लोटन पाटिल ने काफी संघर्ष किया. सहायक निर्देशक से निर्देशक बनने तक की यात्रा काफी कठिन रही. पर अपनी लगन व मेहनत के बल पर उन्होंने सफलता का मुकाम पाया. मराठी भाषा में ‘बवंडर’ और ‘धग’ फिल्मों का निर्देशन तथा ‘धग’के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल करने के बाद वह पहली हिंदी फिल्म ’31 अक्टूबर’ लेकर आए हैं, जो कि 1984 के सिख दंगों पर आधारित है. फिल्म की काफी आलोचनाएं हो रही हैं.

शिवाजी लोटन पाटिल का दावा है कि फिल्म के 40 दृश्य सेंसर बोर्ड ने काटकर यह स्थिति पैदा कर दी. हाल ही में हुई शिवाजी लोटन पाटिल से एक मुकालात में हमने उनसे पूछा कि आपकी नजर में 31 अक्टूबर 1984 की घटना क्या थी? इस पर शिवाजी ने कहा, ‘हम इसे दंगे नहीं कह सकते. यह एक तरफा कत्लेआम था. जब हमने इस पर शोध कार्य किया, तो हमें इतनी कहानियां मिली कि बता नहीं सकता. हर परिवार पर एक बेहतरीन कहानी वाली फिल्म बन सकती है. मैंने तो अपनी फिल्म में सिर्फ एक परिवार को लिया है. उस वक्त जो कुछ घटा, वह अखबारों में बहुत कम छपा. मगर आप गूगल पर सर्च करेंगे, तो आपको हजारों वीडियो मिल जाएंगे.’

देश की आजादी के समय भी काफी दर्दनाक घटनाएं घटी थी. उन घटनाओं की तुलना आप 31 अक्टूबर 1984 की घटनाओं से किस तरह करेंगे? इस सवाल पर शिवाजी ने कहा, ‘देखिए, हमें अपने देश के इतिहास को समझना पड़ेगा. हमने इतिहास में पढ़ा है कि हमारे देश में पहले मुस्लिम नहीं थे. वह बाहर से आए. जब मुस्लिम आ गए, तो हमने उन्हें अपना लिया. अंग्रेजों से हिंदू, मुस्लिम सिख सबने मिलकर लड़ाई लड़ी. जब देश के आजाद होने का समय आया, तो एक बंदे के दिमाग में घुस गया कि पाकिस्तान बनाओ. जिससे उस वक्त दुश्मनी का भाव पैदा हो गया था. वह दौर नफरत का दौर था. पर 31 अक्टूबर को जो घटना घटी, वहां नफरत की कोई बात नहीं थी. सब कुछ राजनीतिक सोच का मामला था.’

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