बौलीवुड के तमाम फिल्मकार सिनेमा के विकास में कारपोरेट कंपनियों के योगदान की प्रशंसा करते हुए ही नहीं थकते हैं. जबकि कुछ फिल्मकार मानते हैं कि कारपोरेट कंपनियों की वजह से सिनेमा की क्रिएटीविटी को नुकसान हो रहा है. धीरे धीरे कारपोरेट कंपनियों की कार्यशैली को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं. जबकि सफलतम हिंदी फिल्म ‘‘हीरोपंती’’ में मुख्य विलेन का किरदार निभाकर शोहरत बटोरने के अलावा कन्नड़ फिल्म ‘‘राणा विक्रम’’ के लिए ‘‘साउथ इंडियन इंटर नेशनल मूवी अवार्ड’’ के लिए नोमीनेट किए गए अभिनेता रांझा विक्रम सिंह तो कारपोरेट कंपनियों के योगदान को सिरे दर्जे से खारिज करते हुए ‘‘सरिता’’ पत्रिका से कहा-‘‘जब मैं 2004 में चंडीगढ़ से मुंबई आया था, तो मैं किसी को नहीं जानता था.

फिर भी मैने करियर की शुरूआत में बौलीवुड में एक नहीं, बल्कि पांच फिल्में बतौर हीरो की थीं. यह फिल्में मुझे निजी निर्माताओं ने दी थी. मैं तो बालीवुड के बाहर से आया था. पर कारपोरेट कंपनियों के आते ही उन्होने सबसे पहले स्टार कलाकारों से संपर्क किया और हर कलाकार को मनमानी उंची कीमत देकर अपनी फिल्म के लिए अनुबंधित किया. क्योंकि बड़े कलाकारों के नाम पर इनकी कंपनी के शेयर के दाम बढ़ जाते हैं. इन कारपोरेट कंपनियों के बिजनेस का अपना एक अलग तरीका है. उनकी इस कार्यशैली के चलते कई नई प्रतिभाओं को जबरन दबाया गया. सच कह रहा हूं, जब से सिनेमा के बदलाव के साथ कारपोरेट कंपनियां हावी हुई हैं, तब से निजी निर्माता पीछे हो गए. हम जैसे कलाकारों को निजी निर्माता लेकर आए थे, तो हम भी उन्ही के साथ पीछे हो गए. पर दक्षिण भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की वजह से मैं जमा हुआ हूं. अब मैंने अपने मित्र के साथ मिलकर हिंदी व पंजाबी भाषा की फिल्म ‘25 किले’ का निर्माण किया है, जिसका मैं हीरो हूं’’

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