अभिनेता अक्षय खन्ना के करियर पर यदि नजर दौड़ाई जाए, तो एक बात साफ तौर पर उभरकर आती है कि उन्होंने ज्यादातर डार्क शेड्स वाले किरदार निभाते हुए, खुद को इंज्वॉय किया है, पर वे ऐसा नहीं मानते. उनकी नजर में वे हर तरह के किरदारों को निभाना इंज्वॉय करते हैं. इसी के चलते उन्होंने डार्क व संजीदा किरदारों के अलावा हास्य व नकारात्मक किरदार भी निभाए हैं. गत वर्ष प्रदर्शित फिल्म ‘ढिशूम’में वे डॉन बने थे. अब श्रीदेवी के साथ फिल्म ‘‘मॉम’’ में वे पुलिस अफसर के किरदार में नजर आएंगे.

उनसे हुई हमारी बातचीत के कुछ अंश...

बीस वर्ष के अपने अभिनय करियर को आप किस तरह से देखते हैं?

- आप जैसा जवाब चाहते हैं,वैसा मैं जवाब नही देने वाला.मैं उससे कुछ अलग हटकर जवाब देना चाहूंगा. हर वर्ष हिंदी या तमिल या तेलगू या मलयालम सिनेमा के परदे पर जो नए चेहरे आते हैं, उनमें से एक दो चेहरों को दर्षक देखना पसंद करता है, पर पिछले बीस वर्ष से दर्शकों ने मुझे हर फिल्म में देखना पसंद किया.

दूसरी बात कला के अलग अलग फार्म हैं. कलाकर चाहे  जिस किस्म का आर्टिस्ट हो,चित्रकार हो डांसर हो या गायक हो या अभिनेता हो, निर्देशक हो या कवि या लेखक ही क्यों न हो. उसके लिए महत्वपूर्ण होता है कि एक्सप्रेस करने की प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए. हर कलाकार के करियर की अपनी अवधि होती है. लता मंगेशकर या आशा भोसले का करियर साठ वर्ष तक चलता रहा, आज भी बंद नहीं है. कुछ कलाकारों का करियर सिर्फ एक दो साल या ज्यादा से ज्यादा पांच वर्ष ही है, तो कुछ दस से 25 वर्ष तक है. यह सब उनकी अपनी तकदीर है. सबसे बड़ी अहमियत यह है कि जब तकदीर आपको कुछ देती है, उस वक्त का आप उपयोग किस तरह से करते हैं? मान लीजिए, आप चित्रकार हैं. आपकी एक तस्वीर दस हजार में बिक गयी. दूसरी तस्वीर बिकी ही नहीं. यानि कि सफलता असफलता की गणित लगाने की बजाय कलाकार को अपनी यात्रा को इंज्वॉय करना चाहिए. मैं वही करता आ रहा हूं.

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