कोई किरदार सफलता के चरम पर पहुंचता है तो वह शख्सीयत का नाम बन जाता है. हास्य अभिनेता सुनील ग्रोवर के लिए ‘गुत्थी’ का किरदार कुछ ऐसी ही सौगात ले कर आया था. अब इस से परे रंगरूप में सुनील ‘चुटकी’ बन कर दर्शकों के दिलों पर राज करने आ रहे हैं. कैसे, पढि़ए उन्हीं की जबानी.
टैलीविजन शो ‘चला लल्लन  हीरो बनने’ से कैरियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता और स्टैंडअप कौमेडियन सुनील ग्रोवर हमेशा हंसने और हंसाने में विश्वास रखते हैं. हरियाणा के सिरसा जिले के डबवाली में जन्मे सुनील की प्रारंभिक पढ़ाई गांव में ही हुई जबकि कालेज की शिक्षा उन्होंने चंडीगढ़ में पूरी की. बचपन से ही नकल उतारने और कौमेडी करने में माहिर सुनील ने जसपाल भट्टी के साथ भी काम किया है. उन्होंने रेडियो, टीवी और फिल्मों में अलगअलग भूमिकाएं निभाई हैं. ‘कौमेडी नाइट्स विद कपिल’ में गुत्थी की भूमिका उन की सब से प्रशंसनीय भूमिका रही जिसे दर्शकों ने काफी सराहा. अब वे उस शो को छोड़ चुके हैं और अपने नए शो के साथ आगे आने वाले हैं. पेश हैं उन से हुई बातचीत के अंश :
हंसी का सफर कैसे शुरू हुआ?
स्कूल में या रिश्तेदारों के समूह में कभीकभी मिमिक्री करता था, लोग खूब हंसते थे. मैं केवल 10-12 साल का था पर सभी मुझ से हास्य अभिनय करने की सिफारिश करते थे. तब कुछ अधिक समझ में नहीं आता था पर धीरेधीरे जब बड़ा होता गया तो ड्रामा, कंपीटिशन समझ में आया. परिवार और दोस्तों का प्रोत्साहन मिला और मैं ने ‘ड्रामा में मास्टर्स’ की शिक्षा हासिल कर ली. इस के बाद से शो मिलने शुरू हो गए. थिएटर में भी काम किया और आज इस मुकाम पर पहुंचा हूं.
गुत्थी का किरदार कैसे मिला?
पहले भी कई बार मैं महिला किरदार निभा चुका था. जब शो शुरू हुआ तो कपिल ने कुछ नया करने की योजना बनाई. बैठ कर चर्चा की गई तो गुत्थी का चरित्र सामने आया. पहले शो में मेरा चरित्र नहीं था लेकिन जब इस का परिचय करवाया गया तो दर्शकों ने काफी पसंद किया. टीआरपी बढ़ गई. फिर इसे और अधिक आगे लाया गया. इस तरह यह चरित्र स्थापित हुआ और मैं खुश हूं कि मैं दर्शकों की उम्मीदों पर खरा उतरा.
बाद में आप ने शो क्यों छोड़ दिया?
वजह कुछ खास नहीं थी, मुझे कुछ नया करना था इसलिए छोड़ा. कपिल और मैं अभी भी अच्छे दोस्त हैं.
कौमेडी के बदलते माने पर आप के क्या विचार हैं?
हर चीज बदलती है. आप को हर दिन अलगअलग लोग मिलते हैं. उन का खानापीना, भाषा, रहनसहन सबकुछ बदलता रहता है. बदलाव ही प्रकृति है. पानी अगर बहता रहे तभी ताजा रहता है. बदलाव अच्छे के लिए ही होता है. पर कौमेडी हमेशा ऐसी करनी चाहिए जिसे देख कर या सुन कर लोगों को हंसी आए.
आज के स्ट्रैस भरे माहौल में हंसना और हंसाना कितना जरूरी है?
तनाव कम करने के लिए हंसना जरूरी है. जो लोग तन्हा होते हैं, ज्यादातर वही स्ट्रैस के शिकार होते हैं. किसी को हंसाने के बाद जो रिलैक्स उस के चेहरे पर दिखता है उसी से मुझे बहुत संतुष्टि मिलती है.
कोई कैसे अपने आसपास हंसने का जरिया ढूंढे़?
सब से पहले अपना नजरिया बदलें. अपने अंदर झांकें तब आप को हर बात में हंसी नजर आएगी. नजरिया बदलने से आप के आसपास ऐसी कई ह्यूमरयुक्त परिस्थितियां मिल जाएंगी जिन से आप को हंसी आएगी. कहीं कुछ भी हंसने योग्य मिल रहा हो तो तुरंत हंस लें. कोई व्यक्ति गुस्से से कोई बात कहे तो उसे जवाब हंस कर दें, परिस्थितियां बदलेंगी और आप खुश रहेंगे.
व्यंग्य करते समय किसी के व्यक्तिगत मानसम्मान को हानि न पहुंचे, इस का ध्यान रखा जाता है?
ध्यान अवश्य रखना चाहिए. आप अपने ऊपर हंस लें पर किसी के व्यक्तिगत मानसम्मान का खयाल कौमेडी करते वक्त अवश्य रखें. सामने वाले का कंफर्ट लैवल देख कर ही कौमेडी की जानी चाहिए. कौमेडी से व्यक्ति हंसे, न कि दुखी हो.
एक कौमेडियन में क्या होना चाहिए?
हर व्यक्ति का अलग मैकेनिज्म होता है हंसाने का, जो अलगअलग तरीके से काम करता है. कोई सीमारेखा या कुछ अलग व्यक्तित्व की आवश्यकता नहीं होती. हर व्यक्ति अपने तरीके से हंसाता है. लेकिन इन सब के लिए एक ‘औडियंस’ अवश्य चाहिए.
इन दिनों सोशल साइट्स पर राजनीतिज्ञों के फोटो, जोक्स के साथ खूब परोसे जा रहे हैं, इस बारे में आप की क्या राय है?
हर व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति के लिए स्वतंत्र है. लेकिन व्यक्तिगत रूप से किसी को चोट न पहुंचे, इस का खयाल अवश्य रखना चाहिए. कौमेडी ‘सटायर’ है. इस में एक मैसेज छिपा होता है. व्यंग्यकार, ठीक व्यंग्य कर लोगों को आईना दिखाता है और उसी से लोगों को हंसाता भी है.
क्या लड़की बन कर कौमेडी करना आसान होता है?
जब पुरुष लड़की का रूप धारण करता है तो अपनेआप में ही वह हास्य बन जाता है. कौमेडी कभी भी आसान नहीं होती.
आप खुद कभी मजाक के पात्र बने?
जब मैं गुत्थी की भूमिका निभा रहा था तो जैंट्स टौयलेट में जा रहा था, वहां किसी ने लेडीज टौयलेट में जाने को कहा, जो बहुत ‘फनी’ था.
किस कौमेडियन से प्रभावित हैं?
राजेंद्रनाथ, केश्टो मुखर्जी, जसपाल भट्टी, बीरबल आदि से प्रभावित हूं. इन्हें देखने पर सहज ही हंसी आ जाती है.
आप की पत्नी और घर वाले आप को कितनी सहजता से लेते हैं?
घर वालों से मुलाकात कम होती है. पत्नी के साथ मैं, सुनील ग्रोवर ही रहता हूं. मेरा 3 साल का 1 बेटा भी है.
पत्नी अगर गुस्सा हो जाए तो क्या करते हैं?
पत्नी सीरियस हो तो ही ठीक लगती है. सीरियस ही रहने देता हूं. जब गुस्सा उतरेगा तो अपनेआप ही परिस्थिति सामान्य हो जाएगी.
क्या कौमेडी कभी आप पर भारी पड़ी?
एक बार मैं अपने घर के बाहर खिड़की से शराबी की नकल कर रहा था. घर वालों को लगा कि कोई शराबी है, उसे मार कर भगाओ. और वे लोग डंडे हाथ में लिए मुझे मारने आए, ज्योंही उन्होंने डंडा उठाया, मैं तुरंत मुड़ा. वे हंसने लगे. अगर 1 सैकंड भी देर होती तो शायद डंडा मेरे सिर पर पड़ जाता.
आगे और क्याक्या कर रहे हैं?
एक टीवी चैनल पर ‘मैड इन इंडिया’ में ‘चुटकी’ की भूमिका में हूं. यह बहुत चुनौतीपूर्ण और देसी शो है. उम्मीद है दर्शकों को पसंद आएगा. इस के अलावा कुछ फिल्मों में भी काम करने की बात चल रही है. धीरेधीरे मैं आगे बढ़ना चाहता हूं और ढेर सारा काम करने की सोचता हूं.
रोमांस की दुनिया में कौमेडी कितना काम करती है?
रोमांस में जहां तकरार हो वहां कौमेडी ही काम करती है. क्योंकि हंसते और हंसाते रहने से व्यक्ति हर समस्या से पार निकल जाता है.

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