महाराष्ट्र की सियासत में खासा मुकाम हासिल कर चुके नारायण राणे की निजी जिंदगी उन की अर्धांगिनी नीलमताई से शुरू होती है और उन्हीं के इर्दगिर्द खत्म. वे सालों के अपने परिपक्व प्रेम, विश्वास और पारस्परिक सामंजस्य की बदौलत जीवन में आई उपलब्धियों को साझा कर रहे हैं आसावरी जोशी से.

सामाजिकता और राजनीति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. सामाजिकता, समाज के लिए कुछ कर दिखाना, समाज के दुर्बल लोगों के बारे में सोचना, या यों कहें कि हम जिस समाज में रहते हैं उस का हम पर जो कर्ज है उसे चुकाने के लिए, कम से कम पलभर के लिए ही सही, सच्चे मन से सोचने के लिए एक संवेदनशील मन की जरूरत होती है.

समय के साथ इस सामाजिक व्यवस्था को और भी सक्षम बनाने के लिए राजनीति का सहारा लेना ही पड़ता है. फिर जैसेजैसे समय बीतता जाता है वैसेवैसे राजनीति परिस्थिति की जरूरत या किसी और कारण से समाज व्यवस्था पर धीरेधीरे हावी होने लगती है और संवेदनशीलता समय के साथ में कहीं पीछे छूट जाती है और अपनेआप ही उस पर धूल की परत जमा हो जाती है. लेकिन ऐसा कहा जा सकता है कि कुछ लोगों के बाबत ये नियम काफी अपवादों के बाद सिद्ध होते हैं.

नारायण राणे, महाराष्ट्र की राजनीति की एक बड़ी हस्ती, एक प्रतिष्ठित नाम, उन से मुलाकात करने के लिए मैं उन के घर पहुंची. उन के चेहरे पर प्रसन्नता और स्वागतशीलता के भाव से मैं ने सवालों का सिलसिला शुरू किया और एक अलग ही व्यक्तित्व मेरे आगे उभरता गया. अपने परिवार को प्यार करने वाले एक पिता, पोतों को प्यार करने वाले एक दादा और सब से खास अपनी पत्नी को जान से भी ज्यादा प्यार करने वाले एक प्यारे पति, पत्नी का नाम आते ही वे रोमांटिक और भावुक हो गए.

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